Sex Stories
भरी जवानी में मैं Sex Stories अपनी क्लास के एक सुन्दर से लड़के से प्यार कर बैठी। झिझक तो खुलते खुलते ही खुलती है। पहले तो हम क्लास में ही चुपके से प्रेम-पत्र का आदान प्रदान करते रहे। एक दिन प्रतीक ने मुझे वहाँ के एक गार्डन में शाम को बुलाया। मैं असमंजस में थी कि जाऊं अथवा ना जाऊं। फिर सोचा कि इसमें डरने की क्या बात है … वहाँ तो और लोग भी होंगे। पर किसी ने पहचान लिया तो फिर … ? चलो मुँह पर कपड़ा बांध लेंगे।
मैंने हिम्मत की और शाम को बगीचे में पहुंच गई। वो मोटर साईकल स्टेण्ड पर ही मेरा इन्तज़ार कर रहा था। हम दोनों उस शाम को बहुत देर तक घूमे। खूब बातें की, पर प्यार की नहीं, बस यूँ ही इधर उधर की। मेरा डर मन से निकलता गया और अब मुझे उसके साथ घूमना-फ़िरना अच्छा लगने लगा। धीरे धीरे हम प्यार की बातें भी करने लगे।
पहले तो मुझे बहुत शरम आती थी, पर मैं अपना चेहरा हाथों से छिपा कर बहुत कुछ कह जाती थी। वो एक बहुत ही शरीफ़ लडका था, उसने मुझे अकेला पा कर भी कोई भी अश्लील हरकत नहीं की। पर मुझे यह अजीब लगता था। मेरी मन की इच्छा तो यह थी कि हम दोनों अकेले में एक दूसरे के यौन-अंगों से छेड़छाड़ करें, कुछ रूमानी माहौल में जाये। कुछ ऐसा करें कि मन की आग और भड़क जाये …
यानि … यानि …
एक दिन मैंने ही पहल कर दी। एकान्त पा कर मैंने अपना चेहरा हाथों में छिपा कर कह ही दिया,”प्रतीक … एक बात कहूँ … ?”
“हां अंजली … कहो …!”
“बस एक बार … एक बार … यानि कि … ” मैं नहीं कह पाई। पर दिल ने सब कुछ समझ लिया। उसने चेहरे पर से हाथ हटाया और मेरे होंठों को चूम लिया।
“हाय … और करो ना … !”
उसने ज्योंही मेरे होंठों पर अपने होंठ रखे, मैंने जोर से उसे भींच लिया और बेतहाशा चूमने लगी। प्रतीक ने मेरे बालों में हाथ डाल कर सहला दिया। मेरी गुलाबी आंखें उस एकटक निहारने लगी। मेरी नजरें स्वतः ही झुक गई।
इसी तरह एक दिन मैंने उसके हाथों को मेरे सीने पर रख कर स्तनों को दबाने को कह दिया।
उसने बड़े ही प्यार से मेरे स्तन सहलाये और दाबे … । अब मुझे प्यार में सेक्स का भी मजा आने लगा था। फिर वो घड़ी भी आई जब मैंने उसका हाथ मेरा कुर्ता ऊपर करके अपनी चूत पर रख दिया। वो उसे सहला कर मेरे नक्शे का जायजा लेने लगा। मेरी गीली चूत का भी उसे अहसास हो गया।
मैंने भी हिम्मत करके उसका लण्ड पकड़ लिया और सहलाने लगी।
अब अधिकतर यही होने लगा था कि हम किसी कोने या अंधेरी जगह को तलाशते और एक दूसरे के अंगों के साथ खेलते और वासना में लिप्त हो जाते।
एक दिन प्रतीक ने मुझसे चुदवाने को कहा। मैं डर गई, मुझे तो इसी खेल में मजा आने लगा था। पर चुदना, मतलब उसके लण्ड को मेरी चूत में घुसवाना पड़ेगा। जाने क्या होगा … ? मैं उसे टालती रही। यूँ हम सालभर तक ऐसे ही वासना भरा, अंगों की छेड़छाड़ का खेल खेलते रहे। हां अब हम कभी कभी अपना यौवन रस भी निकालने लगे थे। उसका तो वीर्य भी ढेर सारा निकलता था। उसका लण्ड वास्तव में मोटा था। उसका सुपाड़ा भी मैंने देख लिया था, बड़ा सा फ़ूला हुआ लाल टमाटर जैसा था, पर उस समय वो उत्तेजित था।
यूँ ही करते करते मेरी शादी भी पक्की हो गई। शादी का समय भी आ गया और फिर देखते ही देखते शादी भी हो गई। हम दोनों इस बार बहुत ही फ़ूट फ़ूट कर रोये थे। हम में भाग कर शादी करने की भी हिम्मत नहीं थी। हमारी कसमें, वादे सभी कुछ किताबी बातें बन कर रह गये थे। तारे तोड़ कर लाना बस मुहावरा बन कर ही रह गया था।
मेरे पति बंसी लाल की एक बड़ी दुकान थी, जो बहुत अच्छी चलती थी। वो अधिकतर दिल्ली या कलकत्ता आता जाता रहता था। मेरे लिये बहुत सी चीज़ें लाया करता था। मुझे वो बहुत प्यार करता था। चुदाई भी बहुत बढ़िया करता था। हां, गालियां वगैरह नहीं देता था। जब भी बंसी लाल शहर से बाहर जाता तो मैं प्रतीक के कमरे पर चली जाती थी।
उन दिनों मेरी जिन्दगी रंगो से भरी हुई थी। मुझे सब कुछ सुहाना और सुन्दर सा लगता था। मेरा मन खिला खिला सा रहता था। मेरा पति मुझे बहुत प्यार करता था और मेरा प्रेमी मुझ पर अब भी जान छिड़कता था। दोनों ही मुझे बहुत खुश रखते थे। आज भी मैं अपनी स्कूटी से प्रतीक के घर आ गई थी। प्रतीक हमेशा की तरह अपनी पढ़ाई में लगा था। मुझे देखते ही वो खुश हो गया और मुझे अपने आलिंगन में जकड़ लिया। सदा की तरह उसका लण्ड खड़ा हो गया और मेरी गाण्ड की दरार में घुसने लगा। मुझे बस रंगीनियाँ ही रंगीनियाँ नजर आने लगी।
कुछ देर तक तो हम चूमा-चाटी करते रहे … फिर मैंने उसका लण्ड पकड़ लिया और सहलाने लगी। आज उसने अपना पजामा उतार दिया और अपना नंगा लण्ड मेरे हाथों में थमा दिया। उसका मोटा लण्ड मेरे दिल में पहले ही बसा हुआ था, सो उसे मैंने हौले हौले रगड़ना चालू कर दिया। उसने भी आज पहली बार मेरी साड़ी उतार दी और हाथ ब्लाऊज में घुसा दिया। मुझे इस से थोड़ी तकलीफ़ हुई फिर मैंने उसका हाथ हटा दिया।
“ऐसे मत करो, लगती है … बस अब मैं चलती हूँ !”
पर प्रतीक ने मेरी एक ना सुनी। उसने मुझे बिस्तर पर लेटा दिया और मेरे ऊपर चढ़ गया।
“ये मत करो, पति के अलावा दूसरा कोई नहीं … !!” मैं कुछ आगे कहती, प्रतीक ने चुप करा दिया,”मैं दूसरा नहीं हूँ, मैं तुम्हें प्यार करता हूँ, आज मुझे सब करने दो … “
“नहीं प्रतीक, बस ऊपर ही ऊपर से कर लो … “
“प्लीज बस एक बार चुदा लो … देखो मैं तो तुमसे कब से प्यार करता हूँ, मेरी कसम है तुम्हें … देखो तुमने मेरा क्या हाल कर दिया है … प्लीज अंजली … “
उसका यह हाल देख कर मुझे भी ठीक नहीं लगा। सोचा किसको पता मालूम चलेगा, सच है ये कब से तड़प रहा है … मैं पिघलने लगी। मैंने अपनी साड़ी ऊंची कर ली।
“तुम्हारी कसम अंजली … तुमने तो आज मेरा दिल जीत लिया … ” और वो मुझ पर झुक गया, मुझे प्यार से चूमने लगा, उसका लण्ड मेरी चूत में घुसने लगा। मुझे लगा उसका लण्ड मेरे पति से बहुत मोटा है … कसता हुआ सा भीतर जाने लगा।
आनन्द से मेरी आंखें बंद होने लगी। उसने धीरे धीरे अपना लण्ड मेरी चूत में पूरा उतार ही दिया। दूसरा लण्ड, नया लण्ड … अलग ही आनन्द दे रहा था। मैंने प्यार से प्रतीक को देखा और अपनी ओर खींच लिया।
“प्रतीक … बहुत मजा आ रहा है … अब तक क्यों नहीं चोदा तुमने !”
“तुम ही दूर रही मुझसे … तुम तो मेरी जान हो … आह्ह्ह … !”
वो मेरे से प्यार से लिपट गया और उसके चूतड़ मेरी चूत के ऊपर भचाभच चलने लगे। मैं भी उसे प्यार से चूमने चाटने लगी। मैं अब पलट कर उसके ऊपर आ गई और उसके लण्ड पर बैठ कर चुदने लगी। उत्तेजना के मारे मेरा बुरा हाल था।
उसका लण्ड मेरी चूत को मस्ती से चोद रहा था। कितनी खुशी लग रही थी मुझे।
उसका मोटा लण्ड मेरी योनि में अब भी कसता हुआ आ जा रहा था। मीठी सी गुदगुदी तेज हो गई। मुझे लगा कि मैं चरम बिन्दु तक पहुंच गई हूँ और अब मुझे नहीं सहा जायेगा। तभी मेरा रज छूट गया। प्रतीक ने झट से पोज बदला और मुझे घोड़ी बना दिया और देखते ही देखते उसका लण्ड मेरी गाण्ड में फ़ंस चुका था। मेरी गाण्ड खासी चिकनी थी और खुली हुई थी। उसने लण्ड को भीतर घुसा दिया और आगे पीछे करने लगा। मुझे फिर से आनन्द आने लगा। उसका ये सब इतने प्यार से करना मुझे बहुत पसन्द आया। उसका तरीका इतना अच्छा था कि कोई एक बार चुद जाये तो बार बार लण्ड खाने की इच्छा हो !
मैंने उसे कहा,”प्रतीक, एक बार और मेरी चूत चोद डालो, प्लीज !”
उसने जल्दी से लण्ड बाहर निकाल कर चूत में घुसेड़ दिया। मुझे फिर से असीम आनन्द की दुनिया में पहुँचा दिया। सच में कुतिया के पोज में ज्यादा मस्त चुद रही थी। धक्के अन्दर तक ठोक रहे थे। मधुर चुदाई ने फिर रंग दिखाया और मैं फिर से झड़ने के कगार पर थी। मस्त चूत की उसने जम कर ठुकाई की उसने और मेरा रस फिर से चू पड़ा। तभी उसका वीर्य भी निकल पड़ा। मेरी चूत उसके वीर्य से लबालब भर गई और फिर उसका लण्ड सिकुड़ कर बाहर आता प्रतीत हुआ।
उसने जल्दी से अपनी कमीज को मेरी चूत पर लगा दिया और उसे साफ़ करने लगा।
मैने पीछे मुड़ कर उसे प्यार से देखा। वो बड़े अच्छे तरीके से मेरी चूत को साफ़ करने में लगा था।
“प्रतीक, तुमने मुझे ये सुख पहले क्यों नहीं दिया … ?”
“यह तो सब समय की बात है, तुमने मुझे हाथ लगाने दिया तो मेरी किस्मत खुल गई।”
“हाय राम, अपन इतने दिनों तक बेकार ही यूँ ही मसला-मसली करते रहे, चुदाई कर लेते तो कितना आनन्द आता … ! है ना ?… अपन तो अपने आप को वासना की आग में जलाते रहे … मुठ मारते रहे … प्रतीक, साले तुमने मुझे जबरदस्ती क्यों नहीं चोद दिया?”
“मैं तुम्हें प्यार करता हूँ … कोई जानवर तो नहीं हूँ … “
“कसम खाओ, अब रोज ही ये सब करेंगे … तुम्हारा लण्ड मुझे बहुत ही अच्छा लगा !”
“बस जान लो … आज से ये लण्ड तुम्हारा ही है।”
हम दोनों एक बार फिर से लिपट गये और अब मुझे चोदने वाला पति के अलावा प्रतीक भी था। एक बार फिर से हमने मरने जीने की कसमे खाने लगे, चांद तारे तोड़ कर लाने की बातें करने लगे … मरने जीने की कसमें खाने लगे … आह्ह्ह्ह्ह … … Sex Stories