सौरी सर, आज आखिरी दिन था मजार में हाजिरी लगाने का, आज 40 दिन पूरे हो गए हैं, कल से मैं समय से पहले ही हाजिरी दर्ज करा लूंगा.”
“यह क्या मजार का चक्कर लगाते रहते हो? इतना पढ़ने लिखने के बाद भी अंधविश्वासी बने हो।” प्रोफैसर ने व्यंग्य किया.
“सर, ऐसा न कहिए।” एक छात्र बोल उठा.
दूसरे छात्र ने हां में हां मिलाई,” सर, आप को मजार की ताकत का अंदाजा नहीं है।”
“सर, अंगरेजों के जमाने से ही इस मजार का बहुत नाम है, 40 दिनों की नियम से हाजिरी लगाने पर हर मनोकामना पूरी हो जाती है।” किसी छात्र ने ज्ञान बघारा.
आज भौतिकी की क्लास में मजार का पूरा इतिहास भूगोल ही चर्चा का विषय बना रहा.
प्रोफैसर भी इस वार्त्तालाप को सुनते रहे.
महेंद्र सिंह का पूरा छात्र जीवन व नौकरी के शुरू के वर्ष भोपाल में बीते हैं.
पिछले वर्ष उन्हें इस छोटे से जिले से प्रोफैसर का प्रस्ताव आया तो वे अपनी पत्नी को लेकर इस कसबेनुमा जिले परसिया में चले आए जहां सुविधा व स्वास्थ्य के मूलभूत साधन भी उपलब्ध नहीं हैं.
नए खुले आईटीआई में महेंद्र सिंह को उन के अनुभव के आधार पर प्रोफैसर के पद का औफर मिला, तो वे मना न कर सके और भोपाल के अपने संयुक्त परिवार को छोड़ कर अपनी पत्नी को साथ लिए यहां चले आए.
30 वर्षीय पत्नी सुजाता बेहद सुन्दर आधुनिक व उच्च शिक्षित है इसीलिए कभी कभार वह भी कालेज में गैस्ट फैकल्टी बन क्लास लेने आ जाती.
यह Xxx बाबा सेक्स कहानी इन्हीं सुजाता मैम की है.
सुजाता जब भी कालेज में आती, छात्रों की बांछें खिल जातीं.
नाभि दिखने वाली साड़ी, खुले बाल, गहरी लिपस्टिक से सजे होंठ और आंखों में गहरा काजल सजाए वह जब भी क्लास लेने आती, लड़कों में मैम को प्रभावित करने की होड़ मच जाती.
वे उसे फिल्मी हीरोइन से कम न समझते.
उस दिन महेंद्र जब घर लौटे तो चाय पीते हुए दिनभर की चर्चा में मजार का जिक्र करना न भूले.
यह सुनते ही निसंतान सुजाता की आंखें एक आस से चमक उठीं कि हो सकता है कि इसीलिए ही समय उसे यहां परसिया खींच लाया है.
शादी के कई साल बीत जाने पर भी अभी तक सुजाता निःसंतान थी बहुत उपाय कर लिए पर गर्भ धारण नहीं हो पाया।
दोनों दम्पति की मेडिकल जाँच में भी सब नार्मल था।
सुजाता जितनी वेशभूषा से आधुनिक थी उतनी ही धार्मिक थी.
आए दिन घर में महिलाओं को बुला कर धार्मिक कार्यक्रम करवाना उस की दिनचर्या में शामिल था.
इसी वजह से वह अपने महल्ले वालों में काफी लोकप्रिय हो गई थी.
सुजाता का शुरू में तो यहां बिलकुल मन नहीं लगता था मगर धीरे धीरे उसने अपने आप को साथी महिलाओं के साथ सामूहिक कार्यक्रम में व्यस्त कर लिया.
उसे रह रह कर भोपाल याद आता.
वहां की चमचमाती सड़कों की लौंग ड्राइव, किट्टी पार्टी, बड़े ताल का नजारा, क्लब और अपनी आधुनिक सखियों का साथ.
इधर, सुजाता का मन मजार के चक्कर लगाने को मचलने लगा.
वह सोचती कि सारे वैज्ञानिक तरीके अपना कर देख ही लिए हैं, कोई परिणाम नहीं मिला.
अब इस मजार के चक्कर लगा कर भी देख लेती हूं.
जब इस विषय में महेंद्र की राय लेनी चाही तो उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया.
शायद उन्होंने भी सुजाता की आंखों में आशा की चमक को देख लिया था.
महेंद्र से कोई भी जवाब न पा कर सुजाता सोच में पड़ गई.
उसने अपने पड़ोसियों से इस विषय में बात करने का मन बना लिया.
लगे हाथ महिलाओं ने सुजाता की दुखती रग पर हाथ रखते हुए उसे भी संतान की मनौती मांगने के लिए 40 दिन मजार का फेरा लगाने का सुझाव दे ही दिया.
कुछ का तो कहना था कि 40 दिन पूरे होने से पहले ही उसकी गोद हरी हो जाएगी.
जितने मुंह उतनी बातें सुन कर सुजाता ने तय कर लिया कि वह कल सुबह से ही मजार जाने लगेगी.
मजार कसबे के बाहर थी।
जब से यह जगह जिले में परिवर्तित हुई है, तब से भीड़ बढ़ने लगी और मजार में एक बाबा मुस्तफा की मौजूदगी भी थी.
बाबा हफ्ते में 3 दिन मजार में, शेष 4 दिन पास में पीपल के नीचे बनी झोपड़ी में बैठा मिलता.
लोग बाबा से अपनी परेशानियां बताते जिन्हें वह अपने तरीके से हल करने के उपाय बताता.
बाबा मुस्तफा बड़ा होशियार था, वह शाकाहारियों को नारियल तोड़ने तो मांसाहारियों को काला मुरगा काट कर चढ़ाने का उपाय बताता.
लोगों के बुलावे पर उन के घर जा कर भी झाड़ फूंक करता.
जो लोग उस के उपाय करवाने के बाद मन मांगी मुराद पा जाते, वे खुश हो उसके मुरीद हो जाते.
लेकिन जो लोग सारे उपाय अपना कर भी खाली हाथ रह जाते, वे अपने को ही दोषी मान कर चुप रहते.
इसलिए बाबा का धंधा अच्छा चल निकला.
सुजाता सुबह के समय साड़ी पहनकर घर से निकली.
उस समय हल्के जाड़े की शुरुआत हो गयी थी.
वह तेज कदमों से मजार की ओर निकल गई.
उसके घर और मजार के बीच एक किलोमीटर का ही फासला तो था.
अभी मजार में अगरबत्ती सुलगा कर पलटी ही थी कि बाबा मुस्तफा से सामना हो गया.
बाबा तगड़ा तंदुरुस्त अधेड़ उम्र का था।
सर पर गोल जालीदार टोपी, सफ़ेद कुरता और लुंगी में था; चेहरे पर लम्बी दाढ़ी।
बाबा सुजाता को देखता रह गया।
उसने कभी सोचा नहीं था कि इतनी सुन्दर स्त्री मजार पर आएगी।
सुजाता ने प्रणाम करने को झुकना चाहा पर बाबा दो कदम पीछे हट गया और बोला- मेरे नहीं, इसके पैर पकड़ो, वह जो इस में समाया है.
उसने उंगली से मजार की तरफ इशारा करते हुए कहा, “जिस मंशा से यहां आई हो, वह जरूर पूरी होगी. बस अपने मन में कोई शंका न रखना.”
बाबा ने सुजाता की आँखों में देखते हुए कुछ मंत्र पढ़े और सुजाता को कुछ मिश्री के दाने दिए।
सुजाता गदगद हो गई.
आज सुबह इतनी सुहावनी होगी, उसने सोचा न था.
उसे पड़ोसिनों ने बताया तो था यदि मजार वाले बाबा का आशीर्वाद भी मिल जाए तो फिर तुम्हारी मनोकामना पूरी हुई ही समझो.
खुश मन से सुजाता ने जब घर में प्रवेश किया तो उसका पति चाय की चुस्की के साथ अखबार पढ़ने में तल्लीन था.
सुजाता गुनगुनाते हुए घर के कार्यों में व्यस्त हो गई.
महेंद्र सब समझ गया कि वह मजार का चक्कर लगा कर आई है.
मगर कुछ न बोला.
वह सोचने लगा कि कितने सरल स्वभाव की है उसकी पत्नी, सब की बातों में तुरंत आ जाती है. अब अगर मैं वहां जाने से रोकूंगा तो रुक तो जाएगी मगर उम्रभर मुझे दोषी भी समझती रहेगी।
अगले दिन फिर सुजाता मजार पहुंची।
उसने अगरबत्ती जला कर माथा टेका।
वापस जाने को घूमी तो सामने बाबा सामने खड़ा था।
बाबा अपनी गहरी आँखों से सुजाता को देखता हुआ बोला- सुजाता, तुम्हे अब चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. तुम्हारी सारी मनोकामना पूरी हो जाएगी।
सुजाता हैरान थी कि बाबा को उसका नाम कैसे पता चला.
“जल्दी ही तुम्हारी गोद में बच्चा होगा, बस कुछ महीनों की बात है।”
सुजाता से अब रहा नहीं गया और पूछा- आपको ये सब कैसे पता बाबा जी?
“मेरे पास तंत्र मंत्र की शक्ति है, मुझे सब पता है। लेकिन सुजाता इसके लिए तुमको साधना करनी होगी.” बाबा ने कहा.
“मैं सब कुछ करने के लिए तैयार हूँ बाबा जी।”
बाबा मुस्तफा ने एक काला धागा निकाला और बोला- इस धागे को अभी अपनी कमर में बाँध लो और इसे कभी भी न खोलना।
सुजाता ने धागा ले लिया और साड़ी को हटाते हुए कमर में दो राउंड करके धागा बांध लिया।
उसकी गोरी कमर और गहरी नाभि पर बंधा काला धागा देखकर बाबा मुस्तफा की आँखों में खास चमक थी.
सुजाता प्रणाम करके घर लौट आयी।
शाम होते होते सुजाता के शरीर में वासना की आग जलने लगी।
उसने सोचा कि जरूर यह इस काले धागे के कारण हुआ है।
रात में पहल करते हुए उसने पति से कहा- आज बहुत मन हो रहा है!
पति महेंद्र ने सुजाता को बाँहों में भर लिया और फिर वासना का तूफ़ान चला और थोड़ी देर में महेंद्र संतुष्ट होकर एक तरफ लेट गया.
पर सुजाता अधूरी थी, अतृप्त थी.
वह जागती रही और उसके मन में बार बार बाबा का तगड़ा तंदरुस्त जिस्म आ रहा था।
सम्मोहनी काला धागा पूरा असर कर रहा था।
अगले दिन कामवासना से तपती सुजाता अच्छी तरह सज धज कर मजार पहुंची।
हरे बार्डर वाली हलकी गुलाबी साड़ी नाभि के नीचे बंधी थी और पारदर्शी साड़ी से कमर दिख रही थी.
गहरे हरे रंग के ब्लाउज से स्तनों के उभार साफ़ दिख रहे थे.
बाबा उसे देखकर समझ गया कि मंत्र वाले काले धागे का असर हो गया है.
सुजाता ने अगरबत्ती करके बाबा की ओर देखा।
बाबा ने अपने पीछे आने इशारा किया।
सम्मोहित सी सुजाता बाबा के पीछे चल दी.
झोपड़ी में पहुंचकर बाबा तख़्त पर बिछे गद्दे पर बैठ गया और सुजाता को बैठने को कहा।
सुजाता तख़्त पर बैठ गयी।
मंत्रमुग्ध सुजाता पूरी तरह से बाबा के वश में थी.
बाबा मुस्तफा उठा और सुजाता को अपने आगोश में ले लिया।
सुजाता के लिपस्टिक लगे होंठों को बाबा ने चूसते हुए उसकी साड़ी उतार दी।
गहरे हरे रंग के ब्लाउज में कैद सुडौल स्तन, गोरी कमर पर गुलाबी पेटीकोट और काले धागे का बंधन।
सुजाता की सुंदरता देख कर बाबा और इन्तजार न कर सका।
उसने सुजाता को तख़्त पर लिटा दिया और अपनी लुंगी खोलते हुए सुजाता के ऊपर आ गया.
धीरे धीरे पेटीकोट ऊपर सरक गया और फिर सुजाता की आ..ह के साथ बाबा का लिंग सुजाता की योनि में प्रवेश कर गया।
बाबा ने एक और धक्का दिया और पूरा लिंग सुजाता की योनि में समा गया।
और बाबा सुजाता के ऊपर छा गया।
सुजाता को अपनी योनि में इतना भराव और कठोरता पहले नहीं मिली थी।
उसने देखा तो नहीं पर शायद बाबा का लिंग काफी मोटा था।
मुस्तफा ने तेजी से सुजाता के शरीर का मंथन करना शुरू कर दिया।
बाबा के भारी भरकम जिस्म के नीचे दबी सुजाता की कामुक सिसकारियां गूंज रही थी.
उसके हर प्रहार के साथ तख़्त की चरमराहट, सुजाता की पायल की छन-छन और चूड़ियों की खन-खन ने बाबा को मस्त कर दिया।
बाबा को ऐसी सुन्दर स्त्री कभी नसीब नहीं हुई थी।
इधर सुजाता को ऐसा तेज और ताकतवर सम्भोग पहली बार मिला था।
वह सब कुछ भूल कर बाबा से लिपटी हुई सम्भोग के आनंद में खोयी हुई थी।
बाबा के एक एक धक्के का जवाब अपनी कमर उचका कर देते हुए आगे बढ़ते बढ़ते वह अपनी मंजिल के पास पहुँच गयी।
सुजाता ने अपनी जांघों से बाबा मुस्तफा को कस कर भींच लिया और चरमसुख के आनंद में खो गयी।
बाबा मुस्तफा ने कुछ लम्बे लम्बे धक्के लगाए और फिर एक लम्बा धक्का मारा।
उसका लिंग सुजाता की योनि में गहराई तक समा गया।
भारी भारी आवाज निकालते हुए बाबा स्खलित होने लगा।
वीर्य की फुहारों से सुजाता की योनि भर गयी।
कुछ हल्के हल्के झटके लगाते हुए बाबा शांत हो गया.
दोनों एक साथ तृप्त हो गए।
एक सुन्दर कामातुर गदरायी स्त्री से सम्भोग करके बाबा मुस्तफा मस्ती से सुजाता के ऊपर लेटा रहा।
थोड़ी देर बाद बाबा मुस्तफा उठा, अपनी लुंगी पहनी और झोपडी के बाहर देखा.
आसपास कोई नहीं था.
सुजाता के चेहरे पर सम्भोग की अपार संतुष्टि थी.
पहली बार उसे ऐसा सम्भोग सुख मिला था।
वह उठी और साड़ी पहनकर घर के लिए चल दी.
शाम तक सुजाता फिर से कामवासना की आग में जलने लगी।
उसका मन बाबा के बारे में सोचने लगा और वह अगले दिन का इन्तजार करने लगी.
सुजाता अगले दिन मजार पर गयी और बाबा से संतुष्ट होकर लौट आयी।
अब सुजाता को बाबा की आदत हो गयी और अब झाड़ फूंक के बहाने बाबा सुजाता के घर भी आने लगा।
पति महेंद्र ड्यूटी पर होते और सुजाता बैडरूम में बाबा के साथ होती।
बाबा मुस्तफा ने सुजाता के यौवन का भरपूर मजा लिया और सुजाता बाबा की सम्भोग शक्ति से मस्त रहने लगी.
यह Xxx बाबा सेक्स का सिलसिला चलता रहा और डेढ़ महीने बाद सुजाता गर्भवती हो गयी।
सब बातों से अनजान पति महेंद्र बहुत खुश थे.
और सुजाता भी बहुत खुश थी पर वो सच जानती थी कि उसका बच्चा बाबा मुस्तफा का है.
अब सुजाता मजार पर कभी कभी ही जाती थी।
लेकिन बाबा उसके घर पर आता रहा।
कुछ दिन बाद सुजाता मजार गयी तो देखा बाबा एक सुन्दर विवाहित स्त्री को काला धागा दे रहा था।
कुछ दिन बाद एक बार वह शॉपिंग करने गयी तो एक और युवती मिली।
उसकी कमर पर काला धागा बंधा था।
उस युवती ने सुजाता की ओर देखा और मुस्कुरा दी।
उसने सुजाता की कमर पर बंधा काला धागा देख लिया था।
सुजाता भी मुस्कुराई।
दोनों की मुस्कराहट में खास समानता थी।