उस गांव से मेरा ट्रांसफर 45 किलोमीटर दूर एक गांव में हो गया था।
यह गांव थोड़ा बड़ा था और यहां के लोग थोड़े पढ़े लिखे और सुखी सम्पन्न थे।
गांव के लोगों के पास खेती के लिए काफी बड़ी जमीनें थी और लोग राजकीय पहुंच भी रखते थे।
खैर जहां समृद्धि होती है वहां टकराव भी होता है.
तो इस गांव में ताकतवर लोगों के गुट बने हुए थे और ये गुट आपस में अक्सर लड़ते रहते थे.
तो यह गांव किसी भी कर्मचारी के कठिन पर माल वाला पोस्टिंग माना जाता था।
मुझे मेरे साथी कर्मचारियों ने इस गांव के बारे में यह सब बताया था- तुम जैसे सीधे सादे आदमी को इस गांव में नौकरी करना मुश्किल है। यहां के लोगों की पहुँच ऊपर तक होने से वे हमारे जैसे छोटे कर्मचारियों को दबा के रखते हैं।
अब मेरा इस गांव से पाला पड़ ही गया था तो सोचा कि जो होगा देखा जायेगा।
मैंने वहां के पुराने पटवारी से चार्ज लिया और काम देखने लगा।
दूसरे दिन गांव के सरपंच से मेरी मीटिंग थी।
सरपंच एक महिला थी.
उसने मिठाई का डिब्बा देकर मेरा स्वागत किया और कहा- आपको हम यहां कोई परेशानी नहीं होने देंगे. हम सब साथ मिल कर काम करेंगे. आप भी हमारा साथ दीजिएगा।
मुझे काफी अच्छा लगा और मैंने महसूस किया कि सरपंच काफी होशियार महिला थी।
बाद में जानने को मिला कि सरपंच तो भले दिल की और अच्छी है पर उसका पति गांव का बाहुबली था और सरफिरा भी!
उसका गुट काफी बड़ा और ताकतवर था और काफी लड़ाई झगडे के बाद उसे सरपंच का पद दिलवाया था।
अगले कुछ दिनों में गांव के बाकी गुट वाले भी मुझसे मिलने आये और उन सबकी मुझसे समर्थन के लिए मांग थी तथा अप्रत्यक्ष रूप से धमकी भी थी की मैं उन्हें ही समर्थन करूं।
इस गांव में शुरु से ही मैंने अच्छे से कामकाज चालू किया तो लोगों के काम समय से होने लगे।
मेरे पहले के पटवारी गांव के कोई ना कोई गुट में मिल जाते थे और काम कराने के पैसे भी लेते थे तो आम लोगों में नाराजगी रहती थी।
वैसे भी गांव के गुट वाले अपनी पसंद का ही पटवारी का गांव में पोस्टिंग करवाते थे।
मैं सभी का काम अच्छे से समय पर और बगैर पैसे लिए करने लगा तो एक दो महीने में ही मेरी गांव में काफी अच्छी छवि उभर आई थी।
दूसरी तरफ दो महीने से मुझे कोई चूत नहीं मिली थी तो मेरा बुरा हाल था।
रश्मि की बहुत याद आती थी, साथ में नम्रता की गोरी और फातिमा की काली चूत भी मुझसे भूली नहीं जा रही थी।
मैंने रश्मि को वचन दिया था तो मैं उस गांव की तरफ जाना नहीं चाहता था।
हालांकि नम्रता और फातिमा की चूत तो मुझसे चुदाने को आज भी तैयार थी।
पर मैंने अब इसी गांव में चूत ढूँढना का तय किया।
यह इस गांव के हिसाब से मुश्किल और मेरे लिए ख़तरनाक भी था क्योंकि पकड़ा गया तो इस गांव के लोग जान से भी मार सकते थे।
पर मेरे लिए इस गांव में किस्मत ने पहले से अच्छा तय करके रखा था।
मैं नयी जगह और कामकाज के चलते अब तक लोंडियाबाजी में नहीं पड़ पाया था. पर अब मैंने गांव में चूत ढूँढना शुरु किया।
पहले तो मैंने सरपंच के बारे में सोचा।
वह 35 साल की घरेलू महिला थी. ऐसे तो वह काफी गोरी थी थोड़ी सी मोटी पर उसका चेहरा खास मुझे प्रभावित नहीं कर पाया. वैसे भी वह मेरा छोटे भाई की तरह ख्याल बहुत रखती थी तो मेरी नीयत उसके लिए खराब नहीं हो पायी।
मैंने दूसरी भाभियों और लड़कियों के बारे में सोचा।
कुछ भाभियां और लड़कियां मेरे पास काम करवाने अक्सर आया करती थी तो उसमें ही जुगाड़ करने की फिराक में रहने लगा।
दो महीने बाद एक बार मैं ऑफिस के दूसरे कमरे की खिड़की खोल रहा था जिसे कभी कभार ही खोलते थे क्योंकि उस कमरे में पुरानी फाइलें और रेकोर्ड ही रखते थे।
मुझे एक पुरानी फाइल की जरूरत पड़ी थी तो मैं उस कमरे में गया और वहां की खिड़की खोली।
खिड़की से बाहर थोड़ी ही दूर एक जवान औरत कपड़े सुखाती दिखी।
उसकी पीठ मेरी तरफ थी पर मैं तो उसे देखता ही रह गया।
उसका बदन कसा हुआ गठीला और एकदम गुलाबी था जिससे मेरे पैंट में हरकत सी होने लगी।
काफी देर तक मैं उसे निहारता रहा।
फिर वह मेरे सामने घूमी तो देखा कि मैं इसे जानता था।
उसका नाम नाम रेखा था, वह मेरे पास कुछ काम के लिए तीन दिन पहले ही आयी थी।
रेखा सरपंच की रिश्ते में दूर की देवरानी थी और सरपंच के मायके के गांव की ही थी तो सरपंच से उसकी काफी बनती थी।
सरपंच ने मुझे उसका काम जल्दी निपटाने का अनुरोध भी किया था।
काम में व्यस्त होने की बजह से मैंने उस पर ध्यान नहीं गया था पर आज उसका कामुक बदन देख कर मेरे तो तोते उड़ गये थे।
मैंने तुरंत ही एक प्लान बनाया और सरपंच के जरिए उसे संदेश दिया कि उसके दिये कागज में एक दो कागज कम हैं.
तो वह दूसरे दिन ऑफिस आ गयी।
ऑफिस में कोई नहीं था, वह अपने छोटे बच्चे के साथ आयी थी।
मैंने उसे बहुत अच्छी तरह से निहारा।
आज उसने सर पर घूंघट नहीं निकाला था तो मैं जी भर कर उसे निहारता रहा।
शायद उसे भी इस बात का अंदेशा हो गया था।
मैंने उससे हंसते हुए काफी बातें की.
उसने कहा- अरे साहब, ऐसे छोट मोटे कामों के लिए थोड़ा बुलाते हैं आप खुद ही निपटा लेते ना!
वह भी थोड़ी बातूनी और मजाकिया स्वभाव की निकली।
शाम को घर आकर मुझे उसकी कल्पना करते हुए हाथ हिला के आग को शांत करना पड़ा।
रेखा छब्बीस साल की थी और उसका एक चार साल का बच्चा भी था.
उसका फीगर करीब 36-32-34 का होगा।
उसके नाक नक्श ऐसे कि बोलीवुड की हीरोइन से टक्कर ले सकें।
वह ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी पर काफी होशियार थी।
मैंने सोचा कि पति ने भी क्या किस्मत पायी थी।
अब मैं रोज उस कमरे की खिड़की से रेखा को निहारने लगा।
वह अपने पति और बच्चे के साथ अलग रहती थी, उसके घर से सट कर ही उसके ससुर और जेठ के भी घर थे।
उसका घर का मुख्य द्वार बिल्कुल मेरे ऑफिस के पीछे ही पड़ता तो मैं खिड़की से ही उसके घर में भी देख सकता था।
मैंने कई बार कपड़े सुखाते या झाड़ू निकालते समय उसकी ब्रा और क्लीवेज भी देखी थी।
अब उसकी चूत मिल जाए तो जन्नत मिल जाए।
ऐसे ही तीन चार महीने निकल गये।
उसे भी शायद पता लग गया था कि मैं खिड़की से उसे झांकता हूँ।
वह अब मेरे सामने मुंह रख कर कपड़े सुखाती थी और कभी मुस्कुराती भी थी।
बात यहीं आकर रुक गयी थी, कुछ आगे नहीं बढ़ पा रही थी।
उससे बात करने की मेरी हिम्मत भी नहीं हो रही थी।
फिर समय ने करवट बदली और वह एक बार शाम को पांच बजे के आसपास सरपंच से मिलने ऑफिस आयी।
सरपंच ने उसे पारिवारिक काम से बुलाया था।
वैसे मेरे ऑफिस में दोपहर के बाद ज्यादा काम नहीं रहता था पर सरपंच ने अब दोपहर के बाद ऑफिस में बैठना शुरू किया था।
अब यह सिलसिला चल पड़ा की वह सरपंच के साथ गप्पे लड़ाने ऑफिस आ जाती थी।
मेरा टेबल सरपंच के पास ही था तो मैं उसे देखते रहता था और उनकी बात सुनता था।
असल में सरपंच अपने छोटे भाई के लिए रिश्ता ढूँढ रही थी. उसी चक्कर में वह रेखा को बुलाती थी कि फलाना गांव में फलाने आदमी की बेटी अच्छी है।
सरपंच मुझे बहुत मानती थी तो उन दोनों की बातों में मुझे भी शामिल करती थी.
कभी कभी मज़ाक भी हो जाता था।
रेखा बहुत बातूनी थी और हमेशा मजाकिया बातें करती रहती थी।
मैं रेखा को टार्गेट करके बातों के शोट मारता तो वह भी मुझे करारे जवाब देती थी।
सरपंच हमारी बातों का मज़ा लेती थी।
तीन महीने तक ऐसा चलता रहा।
एक बार वह ऑफिस में आयी तो मैं अकेला ही था.
सरपंच किसी काम से बाहर गयी हुई थी.
तो वह वापिस जाने लगी.
उसी वक्त चाय वाला लड़का चाय लेकर आया.
तो मैंने रेखा को रोका और चाय पीने को बोला.
तो वह रुक गयी।
चाय पीते पीते वह बोली- विशाल जी, आपने अब तक सगाई क्यों नहीं की? कोई पसंद नहीं आयी क्या?
मैंने कहा- अभी मेरी उम्र ही क्या है … शादी वादी करके क्या फायदा!
ऐसे थोड़ी देर बात हुई.
फिर जाती हुई वह बोली- जल्दी से कोई ढूँढ लीजिए, कब तक आप यों ही खिड़की से झांकते रहोगे।
मैं कुछ समझ पाऊं … उससे पहले वह इतना बोल कर झट से चली गई।
मुझे समझ आ गया कि वह भी मुझे लाइन दे रही थी।
दूसरे दिन जब मैं खिड़की से उसे झांकने गया तो देखा कि आज वह मेरे सामने ही चेहरा करके मुस्कुराती हुई कपड़े सुखा रही थी।
जाते जाते बाल्टी में बचा पानी उसने जोरदार मुस्कान के साथ मेरी तरफ फेंका।
मैं समझ गया अब इसकी चूत दूर नहीं है।
अब वह खिड़की के पास आकर मुझसे मज़ाक भी कर लेती।
मैंने उसे कई बार शहर घूमने आने का न्योता दिया.
पर वह हमेशा अपने पति के साथ ही शहर आती थी।
एक बार उसने कहा- मेरी मौसी शहर में रहती हैं और मैं उनके घर चार पांच दिन के लिए रहने जाऊँगी.
मौसी के घर का जो पता उसने बताया, वह स्थान मेरे घर से आधा किलोमीटर दूर था।
उसी दौरान मेरी भी दो दिन की छुट्टी थी।
उसने कहा- चलो आप बहुत दिन से निमंत्रण दे रहे थे तो आपकी मेहमान नवाजी भी देख लेते हैं।
मैंने उसे शहर में पास वाले पार्क में मिलने के लिए कहा।
आखिर वह दिन भी आ गया.
वह पार्क में अपने बच्चे के साथ आयी हुई थी।
मैं भी सज-धज के वहां पहुंचा।
उसके बच्चे को अपनी गोद में लेकर मैं उससे बातें करने लगा।
फिर मैंने उसे रूम पर आने को बोला तो थोड़े नखरे दिखा कर वह मान गई।
रूम पर जाकर उसके बच्चे को मेरे बेड पर सुला दिया और हम नीचे चटाई पर बैठ गए।
उसने बताया कि उसकी शादी अठारह की उम्र में हुई थी। शुरू में उसका पति बहुत अच्छे से उसको रखता था फिर बाद में वह सरपंच के पति के संगत में आया और वह पैसों के पीछे पड़ा। वह ट्रांसपोर्ट का बिज़नस करता था जिसमें अच्छी कमाई हो जाती थी. पर अब वह और ज्यादा कमाने के चक्कर में पड़ गया था और राजनीति में भी बड़ा पद पाना चाहता था। सरपंच के पति के अच्छे बुरे सब कामों में वह शामिल रहता है. उस पर पुलिस केस भी चल रहे थे। महीने में करीब बीस दिन घर से बाहर ही रहता था और जब घर आता था तो भी अपने गुट वालों के साथ मीटिंग या पुलिस या कोर्ट वकील या प्रोपर्टी के कामों में व्यस्त रहता। आठ दस दिन घर आता उसमें भी दो तीन दिन ही वह पत्नी और बच्चे के लिए ठीक ठाक समय दे पाता।
दूसरी बात यह थी कि रेखा को अपनी खूबसूरती पर काफी नाज था।
वह चाहती थी कि हर कोई उसकी खूबसूरती का लोहा माने।
पर छोटी उम्र में ही उसकी शादी हो गई और उसके पति ने भी दो तीन साल ही उसकी खूबसूरती को भोगा था। अब वह घर पर होता तो खाली अपनी हवस बुझाने ही रात को रेखा के ऊपर चढ़ जाता और अपने आपको शांत कर के जल्दी ही उतर जाता।
उसमें भी कई बार तो नशे में चूर होकर रेखा को भोगता तो अब रेखा को संतुष्टि नहीं मिलती।
ना तो वह रेखा की तारीफ करता और न उसे समय दे पाता।
पर रेखा की जवानी अब भी बहुत कुछ मांग रही थी जो उसका पति उसे नहीं दे रहा था।
जब रेखा ने मुझे उसके पीछे लट्टू पाया तो उसके अरमान फिर से हरे भरे हो गये।
उसने सरपंच से मेरी काफी तारीफ सुन रखी थी तो वह भी मेरी तरफ आकर्षित हुई थी।
मैं उससे चिपक कर बैठ गया और बातों बातों में मस्के मारने लगा वह भी मुझे करारे जवाब दे रही थी।
वह मुझसे पांच साल बड़ी और एक बच्चे की मां थी आज मैं उसे चोदने जा रहा था।
मैंने उसका हाथ अपने हाथ में लिया और उसके कंधे पर भी एक हाथ रख दिया।
जब मैंने उसके गालों पर एक चुम्बन लिया तो वह दूर जाने लगी.
पर मैंने उसे पकड़े रखा और फिर उसके होंठों से अपने होंठ लगा दिए।
वह भी मेरा साथ देने लगी।
मैंने उसकी पीठ के खुले हिस्से को काफी सहलाया और चूमा भी!
इससे वह काफी गर्म हो चुकी थी.
फिर मैंने उसके बोबे पकड़ लिये और दबाने लगा।
उसके बोबे फातिमा से भी बड़े थे और वह नम्रता से भी ज्यादा गोरी थी तथा रश्मि की तरह गर्म थी।
उसने खुद ही ब्लाउज और ब्रा उतारी फेंकी।
वह बार बार विशाल कर रही थी.
मतलब था कि वह जल्दी मेरा लौड़ा अपनी चूत में चाहती थी.
पर मैं उसे थोड़ा तड़पाना चाहता था और धीरज के साथ उसकी खूबसूरती को पीना चाहता था।
मैं उसके स्तनों को चूसने और दबाने लगा.
वह भी मदहोश हो गई थी।
मैंने उसके पूरे शरीर को चूमा तो वह पागल सी हो गई और हांफने लगी।
वह बोली- विशाल जल्दी करो, अब सब्र नहीं होता है।
मैंने भी अपने कपड़े उतारे और उसने अपने बाकी बचे कपड़े उतार फेंके।
उसने मेरा लंड अपने हाथ में पकड़ा और सहलाने लगी, फिर टोपा चाटने लगी और फिर पूरा लंड चूसने लगी।
मैं तो जैसे जन्नत में पहुंच गया था क्योंकि एक परी मेरा लंड चूस रही थी।
थोड़ी देर बाद उसने मेरा लंड अपने मुंह से निकला और बेड पर सीधी लेट गई और मुझे कहा- विशाल जल्दी आओ, मुझसे रहा नहीं जाता।
मैं भी उसके उपर चढ़ गया और लंड उसकी चूत में डालने लगा।
उसकी गोरी चूत पर काफी काली झांटें थी तो मुझे चूत का छेद ढूंढने में तकलीफ हो रही थी.
पर उससे रहा नहीं गया और उसने मेरा लंड पकड़ कर अपनी चूत में सेट किया और बोली- अब धक्का मारो।
मैंने एक ही झटके में पूरा लौड़ा उसके अंदर घुसा दिया तो उसके मुंह से आह निकली।
मैं उसे धमाधम चोदने लगा.
वह विशाल आह आह और जोर से जोर से ऐसी आवाजें निकाल रही थी।
मैं भी बोल रहा था- मेरी रानी रेखा, तुम्हें जब से देखा तब से मेरे मन में शोले भड़क रहे थे। आज तू मिली है मेरी जान!
ऐसा बोलते हुए मैं उसे जोर जोर से चोद रहा था।
ज्यादा जोश के कारण दस मिनट में ही मेरा पानी छूटने को हुआ तो मैंने कहा- डार्लिंग, पानी कहां निकालूं?
उसने कहा- अंदर ही निकालो।
मैंने उसके अंदर ही अपना वीर्य निकाल दिया और उसके ऊपर ही लेटा रहा।
काफी देर बाद हम अलग हुए और कपड़े पहन कर एक दूसरे की बाहों में लिपट कर बैठ गये।
उसने कहा- काफी समय बाद किसी ने इतने प्यार से मुझे चोदा है। मेरा पति तो बस दारू के नशे में मुझ पर चढ़ जाता है और पांच ही मिनट में पानी छोड़ कर लुढ़क जाता है। मैं प्यासी ही रहती हूँ।
आधा एक घंटा हमने बातें की।
वह फिर से चुदना चाहती थी तो बार बार अपने बोबे मेरे मुंह पर घिसती और मेरे लंड को सहलाती.
तो मेरा लौड़ा भी अब खड़ा हो गया था।
हमने फिर कपड़े उतारे और फिर से चुम्माचाटी और बोबा दबाई की।
उसने मेरा लंड फिर से चूसा तो वह लोहे की छड़ की तरह खड़ा हो गया।
मैंने फिर से उसकी चूत में लौड़ा डाल दिया और चोदने लगा।
इस बार धैर्य के साथ चुदाई की तो आधा घंटा चोद सका।
फिर से मैंने उसकी चूत में अपना वीर्य छोड़ा।
इस चुदाई के बाद वह अपनी मौसी के यहां गयी।
वह अपनी मौसी के घर पांच दिन तक रुकी और मैंने भी अपनी ऑफिस में छुट्टी ले ली और हम रोज मिलते रहे और चुदाई करते रहे।
फिर गांव आ कर वही सिलसिला खिड़की से झांकने का चालू हुआ।
हम दोनों एक-दूसरे को फ्लाइंग किस करते तथा दिन में चार पांच बार खिड़की पर ही मिलन हो जाता।
ज्यादा कुछ नहीं कर पाते थे क्योंकि उसका पति उसके मौसी के घर से वापस आने के दूसरे दिन ही घर आ गया था।
एक हफ्ते बाद उसका पति वापस काम पर लौटा तो उसने मुझे दोपहर में अपने यहां खाने पर बुलाया।
हमने साथ में खाना खाया और खूब चुदाई की.
ऐसे दो महीने चलता रहा।
बाद में उसने मुझे बताया कि वह मां बनने वाली है और उसके बच्चे का बाप मैं ही हूं।
मेरी गांड फट गई.
मैंने कहा- अब क्या करेंगे?
वह हंसती हुई बोली- बिल्कुल फट्टू हो तुम. इसमें डरने की क्या बात है. यह तो खुशी की बात है।
मैंने कहा- किसी को पता चल गया तो क्या होगा?
उसने कहा कि उसने सोच समझ कर ही बच्चा रखवाया था। वह अपने पति की जगह मेरे बच्चे की मां बनना चाहती थी इसलिए उसने मुझे कभी कोंडोम इस्तेमाल नहीं करने दिया था और मेरा वीर्य अपनी चूत में डलवाती थी।
उसने कहा- तुम तो खुश हो. बस किसी को बताना मत कि यह बच्चा तुम्हारा है. यह बच्चा तो हमारे प्यार की निशानी है।
तब जाके मुझे भी राहत हुईं और मैं भी खुश हुआ।
नौ महीने बाद रेखा ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया।
रेखा ने मुझे कहा- यह तुम्हारी बेटी है तो तुम्हीं इसका नाम रखो।
मैंने उसका नाम प्रेरणा रखा।
बाद में मौका मिलने पर मेरी और देशी भाभी चुदाई चालू ही रही।
उसी ने मुझे गांव की कुंवारी चूत भी दिलाई जो आपको बाद में बताऊंगा।
लेखक के आग्रह पर उनकी ईमेल आईडी प्रकाशित नहीं की जा रही है।