मेरा नाम वसुंधरा है और मैं लखनऊ से हूं।
मेरी उम्र 35 साल है और फिगर 36 30 38 है।
कद 5 फुट 3 इंच और जिस्म गोरा है।
पेशे से मैं एक टीचर हूं और साथ ही साथ एक 10 वर्ष के बच्चे की मां भी!
मेरे पति एक मल्टी नेशनल कंपनी में काम करते हैं और समय समय पर उनका तबादला होता रहता है।
मेरी पिछली कहानी
कुंवारी गांड फाड़ दी जीजू ने
और उससे पहले की दो कहानियों में आपने जाना कि कैसे मैं अपने छोटी बहन के पति आनन्द के साथ सेक्स कर बैठी.
यह पहली बार था जब मेरे पति के अलावा किसी गैर मर्द ने मेरा जिस्म भोगा हो।
अब मैं पहले से ज्यादा उत्तेजक हो गई थी और मेरा अंदाज भी बदल गया था. अब मुझमें शर्म ओ हया जरा कम हो गई थी और अब पुरुषों की अश्लील नजरें मुझे डराने की जगह उत्तेजित करती थी।
मेरी नजरें अब पराए मर्दों की तरफ जाना शुरू हो गई थी।
महीने में एक दो बार आनन्द मेरी प्यास बुझाते थे लेकिन अब मेरा मन किसी और मर्द के नीचे आने को लालायित हो रहा था।
मेरे पति विकास मेरी अदाओं से खुश रहते थे और मैं उनके साथ ज्यादा खुलकर संभोग करती थी।
लेकिन उनको कंपनी की वजह से अक्सर बाहर ही रहना पड़ता था और कभी कभी विदेश भी जाना पड़ता था इसलिए मुझे अपनी प्यास बुझाने के लिए कुछ अलग तौर तरीके खोजने पड़े।
हमारे स्कूल में शिवम् नाम का एक लड़का था जो कि मेरी ही क्लास में था।
पढ़ाई में उसका दिल नहीं लगता था और एग्जाम में हमेशा उसके कम मार्क्स ही आते थे।
क्लास टीचर होने के नाते उनके अभिभावकों से मिलने की जिम्मेदारी मेरी थी।
हर बार की तरह शिवम् इस बार भी फेल हो गया।
इसलिए मुझे ही उसके अभिभावकों से मीटिंग करनी थी।
मीटिंग के दिन लगभग सभी बच्चों के मां बाप आते थे।
शिवम् भी अपने पिता के साथ आया हुआ था।
उसके पिता का नाम आशुतोष था।
मैंने उनको देखा तो मुझे उनकी शक्ल जानी पहचानी लगी लेकिन मैंने उन्हें कहां देखा था, यह मुझे याद नहीं आ रहा था।
आशुतोष के 2 बच्चे और थे जो उसके साथ ही आए थे।
मैंने आशुतोष को सामने कुर्सी पर बिठाया और फिर शिवम् की शिकायत की।
मैंने कहा- आशुतोष जी, आपका बेटा बहुत लापरवाही करता है, पढ़ाई में हर बार कम नंबर लाने की वजह से उसका भविष्य संकट में पड़ सकता है।
आशुतोष ने कहा- माफी चाहता हूं मास्टरनी जी, मेरे पास इतना समय नहीं होता है कि मैं इनकी पढ़ाई करवा सकूं और मेरे पास इतनी आय भी नहीं है कि मैं इनकी कोचिंग का इंतजाम कर सकूं।
मैंने कहा- अगर आपके पास समय नहीं है तो अपनी बीवी से कहिए कि वो कुछ ध्यान दे. ऐसे तो काम नहीं चलेगा।
आशुतोष ने कहा- उसी का तो रोना है मास्टरनी जी, मेरी बीवी अब इस दुनिया में नहीं है।
यह कहकर वो जरा उदास हो गए।
मैंने उनसे संवेदना जताई, मैंने कहा- आप हिम्मत रखिए, ऊपर वाला जरूर आपको कोई रास्ता दिखाएगा। वैसे आप करते क्या हैं?
आशुतोष ने कहा- मैडम, मैं कपड़े की दुकान में काम करता हूं। सुबह बच्चों को स्कूल में छोड़ता हूं और छुट्टी के वक्त उनको लेकर घर जाता हूं।
मुझे यह सुनकर जरा बुरा लगा।
अभी उसकी उम्र भी 40 के आसपास थी और इस तरह से उसकी तकलीफ देखकर मुझे बुरा लगा।
मैंने कहा- ठीक है आशुतोष जी, आप जरा ध्यान रखिए बच्चों का! और अगर कोई जरूरत हो तो मुझे जरूर बताइएगा।
मैंने अपना नंबर उसे दिया और वो मुझे नमस्ते कर के चला गया।
अब मैं छुट्टी के बाद अक्सर उनको आते जाते देखती जहां वो अपने बच्चों को लेने आता था।
मैं उसे देखती तो वो दूर से ही नमस्ते कर देता।
इस तरह हमारा परिचय बढ़ा।
कुछ दिन बाद रविवार को मैं कुछ खरीददारी करने मार्केट में निकली तो सोचा कि कुछ अंडर गारमेंट्स खरीद लूं।
मैं एक होजरी शॉप में पहुंचीं तो वहां आशुतोष जी मिल गये।
उन्होंने यह तो बताया था कि वो कपड़े की दुकान में काम करते हैं लेकिन मुझे नहीं पता था कि वो इसी दुकान में काम करते हैं.
शायद इसलिए मुझे उनका चेहरा जाना पहचाना लग रहा था।
मैंने उनसे पूछा- आशुतोष भाई, ये दुकान आपकी है क्या?
आशुतोष ने कहा- अरे नहीं मैडम, हम यहां नौकर हैं, आज मालिक किसी काम से बाहर गए हैं इसलिए मैं अकेला हूं। बताइए क्या खिदमत करूं?
मैंने कहा- कुछ अच्छे ब्रा पैंटी के सेट दिखा दीजिए।
आशुतोष मुस्कुराए और बोले- मैडम, वैसे आपका साइज क्या है?
मैं उनकी मुस्कुराहट की वजह समझ रही थी।
मैंने कहा- जी ब्रा का 34 C और पैंटी 38″
आशुतोष ने मेरे सामने एक से एक बढ़िया डिजाइन की ब्रा पैंटी ला दी.
मैंने उनमें से अपनी पसंद को चुना और फिर आशुतोष ने मुझे डिस्काउंट भी दिया।
आशुतोष ने कहा- मैडम, मालिक डिस्काउंट के लिए मना करता है इसलिए उसे मत बताना कि मैंने आपको डिस्काउंट ऑफर दिया है।अगर आप होम डिलीवरी लेना चाहो तो मैं जुगाड़ कर सकता हूं, आपको सस्ती भी पड़ जाएगी और मेरी नौकरी भी बची रहेगी।
मैंने उसे अपना पता दिया और फोन नंबर भी!
उसके बाद मैं उसकी दुकान से निकल गई।
अब नंबर मिलने के बाद हमारे बीच बातें भी होने लगी और हमारी अच्छी दोस्ती हो गई।
फिर हम दोनों जरा खुलकर बातें करने लगे।
एक रात आशुतोष ने मुझसे कहा- मैडम जी, आप वो लाल नेट वाली ब्रा पैंटी पहना करिए, आपके पति तो देख कर ही मदहोश हो जायेंगे।
मैंने कहा- पहन कर दिखाऊंगी किसे, मेरे पति तो बाहर टूर पर हैं।
आशुतोष ने पूछा- आप अकेली रहती हैं, आपको डर नहीं लगता?
मैंने कहा- नहीं, बेटा रहता है यहां साथ में तो कोई दिक्कत वाली बात नहीं है।
आखिर में आशुतोष ने कहा- मैडम जी, कभी कोई जरूरत हो और आपके पति शहर में न हों तो बताइएगा, ये आशुतोष हर तरह से आपके काम आयेगा।
मैं उसका इशारा समझ रही थी लेकिन मैंने अनजान बने रहने में ही अपनी भलाई समझी।
खैर इसी तरह हमारी बातचीत चलती रही और मैंने एक दो बार आशुतोष को अपने घर भी बुलाया.
वो मेरे लिए बड़ी ही चुनिंदा ब्रा पैंटी लाकर देता था और अब हम अच्छे दोस्त बन चुके थे।
इसी बीच करवा का त्यौहार आ गया।
मेरे पति इस दौरान टूर पर थे और कुछ दिन बाहर ही रहने वाले थे।
इस तरह मुझे करवा अकेले मनाना था।
त्यौहार के एक दिन पहले अचानक रात को मेरी डोरबेल बजी, देखा तो सामने आशुतोष भाई थे।
मैंने पूछा- आशुतोष भाई आप? वो भी इस वक्त? सब खैरियत तो है?
आशुतोष ने कहा- जी मैडम, सब खैरियत है. मैं आपके लिए कुछ लाया था, सोचा कि आपको पसन्द आयेगा, आप देख लीजिए और कॉल करके बताइएगा कि कैसा है।
यह कहकर वे चले गए।
मैंने उनका तोहफा खोला तो उसमें एक डार्क रेड रंग की ब्रा पैंटी का सेट था जिसमें गोल्डन चेन लगी हुई थी और उस पर फूल काढ़े गए थे।
ये पारदर्शी थी और हुस्न को बेहद खूबसूरत तरीके से सामने लाने वाली थी।
देखने में काफ़ी महंगी जान पड़ती थी और ऐसी ब्रा पैंटी लड़कियां अक्सर हनीमून के दौरान पहनती हैं।
मुझे उनका तोहफा पसन्द आया और मैंने उन्हें शुक्रिया का मैसेज कर दिया।
10 मिनट बाद उन्होंने कुछ तस्वीरें भेजी जिनमें एक मॉडल उसी सेट को पहनकर पोज दे रही थी।
आशुतोष भाई ने लिखा- आप इसे पहनकर बेहद खूबसूरत दिखेंगी और आपकी करवाचौथ की रात खुशनुमा रंग में रंग जाएगी।
मैंने उन्हें बताया कि इस बार मुझे त्यौहार अकेले ही मनाना होगा क्योंकि पतिदेव टूर पर हैं और मेरा बेटा भी नानी के यहां गया है।
आशुतोष भाई ने लिखा- अरे, आप खुद को अकेला मत समझिए, हम हैं ना आपकी खुशियां बांटने के लिए। कल हम आपके यहां आ जायेंगे और फिर आप अपना त्यौहार मनाइयेगा।
हमने एक दूसरे को गुड नाईट कहा और मैं अगले दिन का इंतज़ार करने लगी।
आज मेरे दिल में एक अजीब सी कश्मकश थी कि कहीं मैं गलत तो नहीं कर रही हूं.
लेकिन आशुतोष भाई के लिए मेरे दिल में भी काफ़ी कुछ था इसलिए मैंने घटनाक्रम को ऐसे ही चलने देने का फैसला किया।
मैंने खुद को अच्छे से साफ किया और फिर अपनी योनि और बगल के बाल साफ़ किए।
शाम को मैंने ख़ुद को अच्छे से सजाया और फिर वही ब्रा पैंटी पहन ली जो आशुतोष भाई ने दी थी।
ऊपर से मैंने लाल साड़ी और ज्वैलरी पहनी; साथ ही बैकलेस ब्लाउज भी।
मुझे करधनी पहनने का बहुत शौक है और मैं उसे खास मौकों पर ही पहनती हूं।
मैंने एक गजरा लगाया और खुद को दुल्हन की तरह सजा कर तैयार हो गई।
शाम को चांद निकलने से 15 मिनट पहले आशुतोष भाई आए और उनके हाथों में कुछ फल थे।
मैंने उनको अन्दर बिठाया और फिर पूजा अर्चना करने ऊपर छत पर चली गई और पूजा कर के पानी पीकर व्रत खोला।
नीचे आकर मैं आशुतोष भाई से मिली और उन्होंने खुद ही मेरे लिए कुछ फल काट कर रखे थे।
उन्होंने मुझे अपने हाथों से फल खिलाए.
बदले में मैंने भी उनको फल खिलाकर अपना फर्ज अदा किया।
आशुतोष भाई ने मेरी बहुत तारीफ की- मैडम जी, आप आज बहुत खूबसूरत लग रही हैं। अगर मैं आपका पति होता तो आपको बिल्कुल भी अकेला न छोड़ता।
मैंने उनको थैंक्स कहा और बोली- पतिदेव पैसे छापने में लगे हैं, उनको बीवी से ज्यादा पैसा प्यारा है।
आशुतोष- आपको अपना ख्याल रखना चाहिए मैडम जी, वैसे आपने वो लौंजरी पहनी है या नहीं जो हमने आपको दी थी?
मैंने कहा- जी वही पहनी हुई है लेकिन मेरे पतिदेव तो यहां हैं नहीं जो उसे देखकर मेरी तारीफ करते। मेरे पहनने का क्या फायदा हुआ? जंगल में मोर नाचा किसने देखा?
मेरे भाव देख कर आशुतोष भाई का हौसला जरा बढ़ गया- आपके पति ने ना सही, लेकिन मोरनी को हमने तो आज देख लिया है और वो बेहद खूबसूरत लग रही है।
मैं आशुतोष की बात सुनकर मुस्कुरा दी और कहा- ठीक है ठीक है, अब रुकिए मैं आपके लिए चाय बना देती हूं।
मटकती हुई मैं किचन में चली गई तो आशुतोष भाई भी मेरे पीछे आकर खड़े हो गए।
उनकी नजरों से मेरे जिस्म का एक्सरे हो रहा था और मुझे भी मज़ा आ रहा था।
आशुतोष भाई ने कहा- मैडम, आप सच में अप्सरा लगती हो। आपकी ज्वैलरी भी बहुत उम्दा लग रही है आप पर!
यह कहकर वो मेरी करधनी को टटोलने लगे और मैंने कोई विरोध नहीं किया।
मैं बोली- ये मुझे मेरी ननद ने दी थी, मेरी मुंह दिखाई की रस्म में!
फिर उन्होंने अपने हाथ मेरे कमर पर रखे तो मेरे जिस्म में एक सनसनी दौड़ गई।
तभी उन्होंने हाथ मेरी साड़ी पर फेर कर कहा- और ये किसने दी थी मैडम जी?
मैंने कहा- ये मेरी सासू मां ने दी थी, मेरी गोद भराई की रस्म में!
आशुतोष- बड़ी रेशमी और मुलायम है, आप पर खूब फबता है ये रंग!
यह कह कर उन्होंने धीरे से मेरी साड़ी के ऊपर से मेरी कमर सहलाई और फिर हाथ मेरी नाभि पर ले गये।
उसकी गोलाई में अपनी उंगली डाल कर उन्होंने मुझे गुदगुदी की तो मुझे हंसी आ गई।
मैंने कहा- भाई, ये क्या कर रहे हैं आप? मुझे गुदगुदी हो रही है।
उन्होंने कहा- आपके हुस्न को देख रहा हूं मैडम जी, ऊपर वाले ने आपको बेहद खूबसूरती से तराशा है।
ये कहकर उन्होंने मेरे दाएं कंधे पर एक चुम्बन दे दिया।
उनकी दाढ़ी की चुभन ने मुझे हैरानी में डाल दिया।
उनके हाथ मेरी कमर में लिपट गए थे और उनकी गर्म सांसे मेरी त्वचा से टकरा रही थी।
उधर गैस पर चाय उबल रही थी और इधर अंतर्मन में मेरे जज़्बात।
अचानक उन्होंने मेरी गर्दन पर हाथ रखा और कहा- मैडम जी, आपकी चेन बहुत मोटी है, ये किसने दी?
ये कहकर वो धीरे धीरे मेरी चेन को सहलाने लगे।
मैंने कहा- ये मेरे पति ने दी थी, सुहागरात पर!
आशुतोष भाई- आपके पति की पसन्द बेजोड़ है, जेवर और औरत दोनों मामलों में!
यह कहकर उन्होंने मेरे गले को चूम लिया।
क्योंकि मैं कोई विरोध नहीं कर रही थी इसलिए उन्होंने भी मौके का पूरा फायदा उठाया।
अब मुझे अपने नितम्बों के पास कुछ चुभता सा महसूस हुआ, मैं समझ गई कि ये आशुतोष भाई का लंड है।
उन्होंने कहा- मैडम जी, आप ने सबकी दी हुई चीजें तो पहन ली, लेकिन मेरा गिफ्ट पहना या नहीं?
मैं उनकी शरारत समझ गई।
मैंने मुस्कुराते हुए कहा- अभी बताया तो … सबसे पहले आपका ही दिया हुआ गिफ्ट पहना है आशुतोष भाई!
आशुतोष भाई ये सुनकर और खुश हो गए- फिर तो मेरा उस गिफ्ट को देखना बनता है मैडम जी!
यह कहकर उन्होंने मेरे ब्लाउज की डोरी खोल दी तो मेरा ब्लाउज ढीला पड़ गया और मेरी पीठ नंगी हो गई।
मेरी पीठ पर उनकी दी हुई ब्रा की स्ट्रैप साफ दिख रही थी।
आशुतोष भाई ने उस स्ट्रैप पर हाथ फेरा और कहा- ये लाल ब्रा आपके ऊपर बहुत सैक्सी लग रही है मैडम जी।
अब चाय उबल पड़ी लेकिन किसी को फुर्सत नहीं थी उसे पीने की।
उन्होंने कहा- मैडम जी, आपके गहने बहुत महंगे हैं, आप इनको उतार दीजिए वरना गुम हो गए तो बड़ा नुकसान हो जायेगा। आप इनको रख दीजिए तब तक हम कुछ खाने का इंतजाम करते हैं।
मुझे भी उनकी बात सही लगी।
मैंने हामी भरी और बेडरूम की तरफ चल दी।
अपने सारे जेवर मैंने निकाल दिए मंगलसूत्र को छोड़कर!
अभी मैंने अलमारी लॉक की ही थी कि तभी पीछे से आशुतोष भाई आ गए।
आते ही उन्होंने दरवाजे की चिटकनी लगाई, उनका इरादा साफ था।
मेरे ब्लाउज की डोरी अभी भी खुली हुई थी और वो ढीला पड़ गया था।
आशुतोष भाई मेरे पास आए और उन्होंने कहा- मैडम जी, सारे जेवर निकाल दिए ना?
मैंने हामी भरी तो उन्होंने कहा- ये मंगलसूत्र आपके गले में क्या कर रहा है?
मैंने कहा- इसे मैं नहीं उतार सकती आशुतोष भाई, ये मेरे सुहागन होने की निशानी है।
आशुतोष भाई मुस्कुराए और फिर बोले- जैसी आपकी मर्जी मैडम जी, मुझे लगा था कि आप अपने पति से प्यार नहीं करती।
फिर मुझे उन्होंने आईने के सामने खड़ा किया, वो आइना मेरी ही लम्बाई का था।
फिर वो मेरे पीछे आए और कहा- आपने मेरा दिया हुआ तोहफा भी पहना है ना?
मैंने कहा- जी आशुतोष भाई, ये आपका ही दिया हुआ तोहफा है। कितनी बार पूछेंगे आप?
आशुतोष ने शरारती अंदाज में कहा- मैं कैसे मान लूं?
मैंने भी पलट कर कहा- तो देख कर तसल्ली कर लीजिए।
उन्होंने पीछे से ही मेरा पल्लू नीचे गिरा दिया और फ़िर मेरे ब्लाउज को सरका कर मेरे जिस्म से अलग कर दिया।
मैंने भी उनका साथ बखूबी दिया और ब्लाउज उतारने में उनकी मदद की ओर उसे शृंगारदान पर रख दिया।
अब मैं उनके सामने ब्रा और साड़ी में खड़ी थी और वो मेरे पीछे खड़े हुए थे।
उन्होंने मेरी गर्दन पर हाथ फेरा और कहा- ये ब्रा तो वही है मैडम जी, आपके पति अगर आपको इस तरह ब्रा में देख लेते तो वो दुनियादारी भूलकर आपको खुश करने में लगे रहते।
यह कहकर उन्होंने खुद को मेरे बदन से सटा दिया और मेरे पेट पर अपना बायां हाथ रख कर मुझे अपनी ओर खींच लिया।
उनका हथियार बहुत तना हुआ था।
धीरे धीरे उन्होंने मेरे गले पर चुम्बन देना शुरू कर दिया और उनकी पकड़ कड़ी होती चली गई।
उन्होंने फिर मेरे क्लीवेज पर हाथ फेरा और कहा- मैडम, आपके लिए चुनिंदा ब्रा लाया था, आखिर कार मेरी मेहनत सफल रही।
यह कहकर उन्होंने अपनी एक उंगली ब्रा की दरार में घुसा दी और मेरे क्लीवेज सहलाने लगे।
उनके होंठ मेरी गर्दन पर लिपटे हुए थे और मैं बेसुध सी खड़ी अपने लुटने का इंतज़ार कर रही थी।
मेरा मंगलसूत्र उनकी उंगलियों से उलझ रहा था और वो लगातार मेरी दरार को गहरा करने में लगे थे।
उन्होंने मेरा गजरा खोल दिया और फिर मेरी चोटी भी, मेरे खुले बालों को उन्होंने पोनी टेल की तरह समेटा और फिर उन्हे पकड़ कर मेरे सर को अपने काबू में कर लिया।
अब उन्होंने मेरे कानों को धीरे धीरे अपने दांत से कुरेदना शुरू किया और मुझे उत्तेजित करने लगे।
मैं खड़ी आंखें बंद किए आहें भरती जा रही थी।
उन्होंने अपना कुर्ता उतार दिया और मेरे सामने नंगा सीना लेकर खड़े हो गए।
उनकी छाती पर बाल थे जो उनके पेट से होकर नीचे तक पहुंच रहे थे।
उन्होंने मुझे ड्रेसिंग टेबल पर बिठा दिया और आकर मेरे सामने खड़े हो गए।
मेरी सांसें तेज हो चली थी और मेरे माथे से पसीना बहा जा रहा था।
आशुतोष भाई ने मेरे हाथों की चूड़ियां उतार दी और फिर मेरी कलाइयां पकड़ कर अपने काबू में की।
मैं अब उनके रसभरे होंठों का स्पर्श पाने का इंतज़ार कर रही थी लेकिन उन्हे मुझे तरसाने में मजा आ रहा था।
मैंने खुद पर से काबू खो दिया और अपने अधरों को उनके होंठों के सुपुर्द कर दिया।
उउम्मझ
ऊम्म्ह्ह
आशुतोष ऊऊम्म
इस तरह की आवाज़ें गूंजने लगीं।
उन्होंने मेरी कलाइयां छोड़ी और फिर मेरी टांगें फैला दी और आकार बीच में खड़े हो गए।
मैंने कैंची की तरह अपनी टांगें उनकी कमर से लपेट ली।
आशुतोष भाई ने मेरी साड़ी ऊपर सरकानी शुरू कर दी और फिर मेरी जांघों पर लाकर मेरी जांघें मसलने लगे।
मैं बहुत उत्तेजना में थी और अपने होंठों को उनके होंठों से सटा कर उनका रस पी रही थी।
काफ़ी देर तक आशुतोष भाई मुझे यूं ही उत्तेजित करते रहे।
मैं भी अब शर्म लाज भूल चुकी थी।
उन्होंने कहा- मैडम जी, आपने ब्रा तो दिखा दी, पैंटी नहीं दिखाएंगी क्या?
मैंने आशुतोष भाई की बात सुनकर खुद को खड़ा किया और अपनी साड़ी उतार दी।
आशुतोष ने मेरी साड़ी पर कोई दया नहीं दिखाई और उसे वहीं जमीन पर छोड़ दिया।
फिर अपने हाथ उसने मेरे नितम्बों पर रखे और फिर मेरे पेटीकोट का नाड़ा खींच दिया।
मेरा पेटीकोट शाख से छूटे पत्ते की तरह नीचे जमीन में सरक गया।
मेरी पैंटी उनकी आंखों के सामने आई तो उन्होंने झट से मेरे गोल नितम्बों को मुट्ठी में भर लिया और एक चपत लगाई।
सटाक!
मेरे मुंह से आह निकल पड़ी- आशुतोष भाई, ये क्या कर रहे हैं आप? दर्द होता है।
आशुतोष भाई हंसे और बोले- कपड़े की क्वालिटी चेक कर रहा था मैडम, कहीं कमजोर तो नहीं है।
मैंने कहा- क्वालिटी घर जाकर चेक कर लीजिएगा, जाते वक्त मैं इसे आपको वापस लौटा दूंगी।
वे हँसे और बोले- अरे मैडम इतनी भी क्या जल्दी है? अभी तो पूरी रात बाकी है।
आशुतोष भाई नीचे घुटनों पर बैठ गए और मेरी पैंटी का मुआयना करने लगे।
उस जालीदार पैंटी से मेरी गोरी चूत की चमक झलक रही थी।
उन्होंने उसे सूंघा और कहा- बड़ी मदहोश कर देने वाली खुशबू आती है आपकी पैंटी से मैडम!
फिर वो खड़े हो गए।
उनके इस तरह बार बार मेरी काम वासना जागने के बाद पीछे हट जाना मुझे रास नहीं आ रहा था।
मैं उनकी छाती से चिपक गई और खुद को उनके सुपुर्द कर दिया।
अब मुझसे रहा नहीं जा रहा था।
उन्होंने मेरी पीठ सहलाई और एक झटके में ही मेरा हुक खोल दिया।
मैंने भी बखूबी उनका साथ निभाया और अपनी ब्रा को अलग कर के वहीं रख दिया।
अब मैं सिर्फ़ पैंटी में थी और मेरा गोरा बदन एलईडी लाइट में बेहद खूबसूरत लग रहा था।
बाहर पटाखों का शोर जारी था और इधर मेरे मन में मस्ती की लहरें उछल रही थी।
आशुतोष भाई ने बिना देरी किए मेरे स्तनों को अपने काबू में किया और अपने होंठों से उनका रसपान करने लगे।
वे मेरे निप्पलों को दांतों से भींचते और जब मैं आह करती तो उसे छोड़कर दूसरे से चिपट जाते।
इस तरह कई मिनट उनका स्तनपान चला।
मेरे स्तनों को जी भर कर पीने के बाद उन्होंने मुझे छोड़ा और मुझे सोफे पे बैठने को कहा।
मैंने वैसा ही किया।
उन्होंने मेरे बेड की चादर हटा दी और उसके गद्दे लेकर जमीन पर डाल दिया।
एक के ऊपर एक गद्दा बिछा कर उन्होंने उसकी ऊंचाई काफ़ी बढ़ा दी।
फिर उन्होंने मुझे बुलाया और इस गद्दे पर बिठा दिया और मेरे चेहरे के पास आकर खड़े हो गए।
उनका संकेत समझते मुझे देर न लगी।
मैंने अपने दांतों से उनके नाड़े को खींच दिया और उनका पजामा उतार दिया।
फिर उनके अंडर वियर पर हाथ फेरा और उसे कुतिया जैसे सूंघा।
आशुतोष भाई जमीन पर खड़े हो गए और मैं कुतिया जैसी घुटनों पर बैठ गई।
उन्होंने दोनों हाथों से मेरे बाल पकड़ लिए और अपने लिंग पर मेरा मुंह सटा दिया।
उनके अंडर वियर में उनका लिंग फुफकार रहा था और मैं उसे उसे अपने मुंह से सहलाती जा रही थी।
आखिर मैंने खुद ही उसको अंडरवियर से आजाद कर दिया और अपने होंठों को उस पर रख दिया।
उनका लिंग काफी लम्बा और मोटा था।
आशुतोष भाई ने अपना लंड मेरे गले तक धंसा दिया और जब मैं छटपटाई तो निकाल कर हंसने लगे।
फिर उन्होंने यही क्रिया कई बार की।
जब मैं उनके इस काम के साथ तालमेल बिठा चुकी तो उन्होंने मुझे आजाद कर दिया और मुझे गद्दे पर लेटा दिया।
गद्दे पर लेटते ही उन्होंने मेरी पैंटी उतार दी और अब मैं उनके सामने पूर्ण नग्न लेटी हुई थी।
मुझे चूमते हुए आशुतोष भाई नीचे की तरफ आए और उन्होंने मेरी योनि पर अपने होंठ टिका दिए।
उनकी जीभ मेरी योनि पर थिरक रही थी और उससे लगातार रस टपक रहा था जिसे आशुतोष भाई बड़े मजे से पी रहे थे।
उन्होंने अपने हाथ से मेरे चूत का द्वार खोला और फिर अपनी जीभ उसके अन्दर डालने लगे।
उनकी जीभ मेरी चूत के दाने को मसल रही थी और मेरी चूत से रस लगातार बह रहा था।
आशुतोष भाई सिप सिप कर के उसे पिए जा रहे थे।
मैं लगातार अपने नाखूनों में गद्दे को नोच रही थी।
मेरी सिसकारियां कमरे में गूंज रही थी और मैं मस्ती के सागर में गोते लगा रही थी।
उसने भी साथ देते हुए तुरंत हाथ उठाकर मेरे स्तनों को जोर जोर से दबाना शुरू कर दिया.
मैं अत्यंत मजे में थी.
और कुछ ही पलों में मैंने हिचकी लेने की तरह 10-12 झटके लिए और पतली चिपचिपी सी धार उसके मुंह में भरते हुए झड़ गयी।
आखिर कब तक मेरी मुनिया ये सहती!
वे मजे से सारे रस को पी गए।
मेरी सांसें तेज हो गई थी और तेजी से चल रही थी।
मैं जरा ठंडी हुई तो आशुतोष भाई ने मुझे अपने ऊपर 69 पोजीशन में बिठा लिया।
उनके मजबूत हाथ मेरे नितम्बों को मसल रहे थे।
उन्होंने मुझे अपने मुंह पर बिठा लिया और फिर मेरी योनि के साथ साथ मेरी गांड पर भी जीभ फिराने लगे।
मैं भी कुछ देर तक इस हरकत का मजा लेती रही और फिर मैंने अपने होंठ उनके लंड पर रख दिए।
‘उउम्म्ह्ह’
एक गहरा चुम्बन लेकर मैंने उनके लिंग को गीला किया और उसे लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी।
उनके भूरे से लंड को चूसते हुए उसके आसपास के बाल मुझे चुभने लगे लेकिन मुझे उनका गुदगुदाना पसन्द आ रहा था।
उधर उन्होंने अपनी जीभ मेरी चूत से हटा कर मेरी गांड पर ले आए।
उन्होंने अपनी जीभ मेरी गांड की दरार पर चलानी शुरू की और इससे मुझे उत्तेजना के साथ साथ आनन्द का अहसास भी हो रहा था।
अब आशुतोष भाई ने मुझे सीधी किया और अपने ऊपर लिटा लिया और फिर मेरा चुम्बन लिया।
वो बैठ गए और मैं उनकी गोद में आ गई।
मैंने अपनी टांगें उनकी कमर पर लपेट ली और मेरी योनि अब उनके लिंग से सटी हुई थी।
आशुतोष भाई ने अपना लंड सीधा किया और उसे एडजस्ट कर के मेरी योनि के दरवाजे से लगा दिया।
मैंने अपनी बांहों में उन्हे कस लिया और अब वो लम्हा आ गया जिसके लिए हम दोनों ने इतनी मेहनत की थी।
उन्होंने धक्का लगा कर अपना लिंग मेरी योनि में उतार दिया।
आह, इस आवाज के साथ मेरी योनि में एक गर्म रॉड सा लंड उतर गया और मेरे चेहरे पर संतोष के भाव आ गए।
मैं और आशुतोष भाई दोनों एक दूसरे को हिलाने लगे ताकि लिंग की रगड़ योनि में अच्छी तरह से हो।
मैं उनकी गोद में बैठ कर अपनी योनि का मर्दन करवा रही थी और आशुतोष भाई मेरे होंठों को चूस कर उनका रस पी रहे थे।
धीरे धीरे हमारे धक्के तेज होने लगे और आशुतोष भाई ने मुझे गद्दे पर लेटा दिया और मेरे ऊपर आ गए।
उन्होंने अब अपने धक्के तेज कर दिए और जोर जोर से मेरी योनि को चोदने लगे।
मेरी चूत से पानी फव्वारे की तरह बह रहा था और कुछ देर बाद उन्होंने भी आह भरी और फिर मेरी चूत में ही झड़ गए।
उनका गाढ़ा वीर्य मेरी योनि के रस से बहकर बाहर आ गया तो उन्होंने अपनी उंगली डाल दी और फिर मुझे चटाई।
उनके गाढ़े वीर्य का स्वाद मुझे बहुत मजेदार लगा।
मैंने एक टिशू पेपर उठाया और अपनी योनि साफ की और आशुतोष भाई की तरफ़ शिकायत से देखा।
और मैंने कहा- ये क्या किया आपने? मैं प्रेगनेंट हो गई तो?
उन्होंने मुझे चूमा और बोले- गोली खा लेना मैडम जी, मैं ला दूंगा।
उनकी बात ने मुझे निरुत्तर कर दिया।
मैं बॉथरूम गई और पेशाब करके खुद को हल्का किया।