प्रेषक : अमित Hindi Porn Stories
कामिनी की इस घटना को दो दिन बीत Hindi Porn Stories गये थे। इन दो दिनों में मैं विजय से दो बार मिल चुका था। कामिनी के कारण उससे मेरी भी दोस्ती थी। मैंने उसे यह नहीं मालूम होने दिया कि कामिनी की चुदाई के बारे में मुझे मालूम है। आज सवेरे ही मैंने विजय के घर जाने की योजना बनाई। इस बारे में मैंने नेहा को बता दिया था कि विजय की मां और बहन आई हुई हैं, उनसे मिलने जा रहा हूँ।
मैं कॉलेज जाने से पहले उसके घर चला गया। बाहर बरामदे में एक सुन्दर सी लड़की झाड़ू लगा रही थी। मैंने अन्दाज़ा लगाया कि यह विजय की बहन होगी। जैसे ही मैं फ़ाटक के अन्दर घुसा… उसने मेरी तरफ़ देखा और देखती ही रह गई।
मैंने उसे नमस्ते किया तो वो कुछ नहीं बोली। मैं सामान्यतया मुस्कुराता रहता हूँ,”मैं विजय का दोस्त हूँ …. “
“जी… आईये… ” वो कुछ शरमाती सी बोली। मुझे वो अन्दर ले गई और कहा-आप बैठिये… मैं पानी लाती हूँ।
“आप उसकी बहन है ना…” मैंने मुस्कराहट बिखेरते हुए कहा।
वो एकदम से शरमा गई… और मुझे तिरछी निगाहों से देखती हुई अन्दर चली गई। उसकी पतली छरहरी काया और उसके उभार और कटाव भरे पूरे थे। किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर सकते थे। वो पानी ले कर आ गई।
“आपका नाम जान सकता हूँ ….?”
उसका अन्दाज़ कुछ अलग सा था। मुझे लगा कि वो उमर में विजय से बड़ी है।
इतने में एक मधुर अवाज और आई,”ये मेरी मम्मी है …. मै विजय की बहन हूँ …. दिव्या ….!”
मैं बुरी तरह से चौंक गया …. ये कैसे हो सकता है? “जी ….माफ़ करना …. आप तो इतनी छोटी लगती है कि …. मैं तो समझा कि ….!”
“आप ठीक कह रहे हैं …. मेरी कम उम्र में ही शादी हो गई थी …. फिर ये भी एक एक्सीडेन्ट में गुजर गये थे ….” (उसका मुझे घूरना बन्द नहीं हुआ।) वो एकटक मुझे देखे जा रही थी।
“ओह!!! …. माफ़ करना …. यह सुन कर दुख हुआ …. पर आप तो दिखने में किसी लड़की जैसी ही लगती हैं ….” वो फिर से शरमा गई ….
“आप चाय पीजिये …. इतने में विजय आ जायेगा ….!” उसके हाव भाव ये बता रहे थे कि मैं उसे अच्छा लग रहा हूँ …. मैंने सोचा कि और आगे बढ़ा जाये !
“आप अभी ही इतनी सुन्दर लग रही हैं तो जब बाहर जाती होगी तो और भी अच्छी लगती होंगी ….!” उसका चेहरा लाल हो उठा। बिल्कुल किसी कुंवारी लड़की की तरह वह अदाएँ दिखा रही थी। फिर से उसने मुस्कराते हुए मुझे देखा …. मेरी हिम्मत बढ़ने लगी। वो सामने किचन में चली गई। मैं भी उसके पीछे पीछे किचन में आ गया।
मैंने हिम्मत करके उसकी कमर पर हाथ रखा। उसने तुरन्त ही पलट कर मुझे देखा और बोली- “यह क्या कर रहे रहे हो ….”
“सॉरी मैं अपने आपको रोक नहीं पाया, क्योंकि आप में गजब का आकर्षण है !”
वो मुस्करा दी। मेरी हिम्मत और बढ़ गई।
“आप बहुत खूबसूरत हैं …. ” उसके चेहरे पर पसीन छ्लक आया।
“आप भी तो हैं …. हाय” उसके मुँह से निकल पड़ा। मेरे हाथ उसकी चिकनी कमर पर फ़िसलने लगे। उसका शरीर कांप उठा, वो लरजने लगी और झूठ में ही मेरे से दूर होने की कोशिश करने लगी।
“जी ….चाय ….” उसका चेहरा तमतमा रहा था ….हम चाय ले कर फिर से बैठक में आ गये ….”आपका नाम क्या है ….?”
“मेरा नाम जो हन्टर है ….और आपका ….?”
“जी ….म….मैं सरोज ….” वो हिचकती हुई सी बोली …. “आप दिव्या को रोज पढ़ाने आयेंगे ना …. ऐसा विजय कह रहा था ….!” मैं सकपका गया। क्योंकि पढ़ाने की बात मुझे नहीं पता थी।
“मै आपको सरोज ही कहूँगा …. क्योंकि आपको आण्टी कहना आपके साथ ज्यादती होगी !” सुनते ही उसने अपना चेहरा हाथों में छुपा लिया।
“पर वो दिव्या ….?”
“हां …. हां मैं आ जाऊंगा ….उसे भी पढ़ा दूंगा” मैंने मौके को हाथ से गंवाना उचित नहीं समझा। मैंने चाय समाप्त की और खड़ा हो गया। वो भी खड़ी हो गई और मेरे समीप आ गई। मैंने इधर उधर देखा कि कोई नहीं है तो मैंने सरोज का हाथ पकड़ लिया। वो खुद ही धीरे से मेरे सीने से लग गई। मैंने उसे लिपटाते हुए अपनी बाहों में कस लिया। उसने अपना चेहरा ऊपर उठा लिया और अपनी आंखे बन्द कर ली। मुझे कुछ समझ में नहीं आया पर मेरे शरीर में तरावट आने लगी थी, वासना जागने लगी थी। स्वत: ही मेरे होंठ आप ही उसके होंठो की ओर बढ़ गये। कुछ ही देर में हम दोनों एक दूसरे के होंठ चूस रहे थे। मैंने अब उसके उरोजो को थाम लिया। वो कसक उठी।
“हाय …. मत करो …. सीऽऽऽ …. हाय रे” उसके मुख से सिसकारी निकल पड़ी। मैंने धीरे धीरे उसके स्तन दबाने और मसलने चालू कर दिये। उसकी बाहों का कसाव और बढ़ चला था। अब मैंने एक हाथ से उसके चूतड़ दबाने शुरू कर दिये थे। अब उसका भी एक हाथ मेरे लण्ड पर आ चुका था और कस कर पकड़ लिया था।
“हाय …. छोड़ दो ना …. आऽऽऽऽह …. क्या कर रहे हो ….?” इन्कार में इकरार था ….मेरा लण्ड उसने कस के पकड़ रखा था। कह तो रही थी छोड़ने को और बेतहाशा लिपटी जा रही थी। बाहर फ़ाटक की आवाज आई तो वो मेरे से छिटक के दूर हो गई ….
“कल सवेरे नौ बजे आना …. मैं इन्तज़ार करुंगी ….!” इतने में दिव्या अन्दर आ गई। एकबारगी तो वो ठिठक गई …. शायद उसने माहौल भांप लिया था। मैंने अब दिव्या को निहारा। वो एक जवान लड़की थी …. जीन्स पहने थी …. अपनी मां की तरह चुलबुली थी …. तो इसे पढ़ाना है …. लगा कि मेरी तो किस्मत अपने आप ही मेहरबान हो गई है …. आया था कि इन पर इम्प्रेशन जमा कर पटाऊंगा। पर यहां तो सभी कुछ अपने आप हो रहा था। मैं मुस्करा कर बाहर आ गया।
अगले दिन सवेरे नौ बजे मै विजय के यहाँ पहुंच गया। विजय कहीं जाने की तैयारी कर रहा था।
“थेंक्स यार …. तुमने दिव्या को पढ़ाने के लिये हां कर दी …. मैं जरा हेप्पी से मिलने यहीं पान की दुकान तक जा रहा हूँ ….” कह कर वो चला गया।
दिव्या मेज़ पर बैठी पढ़ाई कर रही थी। मुझे देखते ही उसने अपने पास ही एक कुर्सी और लगा दी।
अन्दर से सरोज ने मुझे देखा और शरमाती हुई मुस्करा दी …. दिव्या ने फिर से एक बार इस बात को देख लिया। मैं कुछ देर तक तो पढ़ाता रहा …. फिर मुझे महसूस हुआ कि उसका ध्यान पढ़ाई पर नहीं मेरी ओर था।
“मुझे मत देखो …. …. इधर ध्यान लगाओ ….” पर दिव्या ने सीधे वार करते हुए मेरी जांघ पर हाथ रख दिया ।
“आपने कल मम्मी को किस किया था ना ….” वो फ़ुसफ़ुसाई, मैं बुरी तरह से चौंक गया।
“क्या ??? ….क्या कहा ….” मैं हड़बड़ा गया.
“मम्मी ने मुझे बताया था …. मैं और मम्मी सब बातें एक दूसरे को बताती है …. मुझे भी किस करो ना ….” मुझे एक बार तो समझ में नहीं आया कि ऐसे मौके पर क्या करना चाहिये……उसके हाथ मेरे लण्ड की तरफ़ बढ रहे थे। मेरे शरीर में सनसनी फ़ैल रही थी। अचानक वो मेरे से लिपट पड़ी। दरवाजे से सरोज सब देख रही थी। मेरी नजर ज्योंही दरवाजे पर पड़ी सरोज ने अपनी एक आंख दबा कर मुस्करा दी। मैंने इसमें उसकी स्वीकृति को समझा और दिव्या का कुंवारा शरीर मेरी आगोश में आ गया।
उसकी उभरती जवानी पर मेरे हाथ फ़िसलने लगे। वो बेतहाशा अब मुझे चूमने लगी। मेरा हाथ उसकी स्कर्ट में घुस पड़ा। उसकी चूत गीली हो चुकी थी। मैंने उसकी पेन्टी में हाथ डाल कर उसकी चूत दबा दी। जवाब में उसने भी मेरा लण्ड दबा दिया। सरोज ने अन्दर से इशारा किया तो मैंने उसे छोड़ दिया। दिव्या लगभग हांफ़ते हुए अलग हो गई। उसकी आंखो में वासना के लाल डोरे लगे खिंच चुके थे। सरोज चाय बना कर ले आई।
“दिव्या ….कॉलेज में देर हो जायेगी …. तैयार हो जाओ ….” सरोज ने दिव्या को आंख मारते हुए कहा। दिव्या मुस्कराते हुए उठी और लहरा कर चल दी। वो समझ चुकी थी कि मम्मी अब गरम हो चुकी है अब उन्हें चुदाई चाहिये। मैंने चाय समाप्त की और प्याला मेज़ पर रख दिया।
“सरोज …. जरा सा और पास आ जाओ ….” मैंने आज मौके का भरपूर फ़ायदा उठाने की सोचते हुए अपनी मनमोहक मुस्कराहट बिखेर दी। उसकी आंखें झुक गई। पर उठ कर चुप से मेरी गोदी में बैठ गई। जैसे ही वो मेरी जांघो पर बैठी उसके चूतड़ो का स्पर्श हुआ। वो अन्दर पेन्टी नहीं पहने थी। उसके लचकदार चूतड़ का स्पर्श पा कर मेरा लण्ड फ़ुफ़कार उठा। हम दोनों अब एक दूसरे को चूम रहे थे। मेरा हाथ जैसे ही उसके बोबे पर पड़ा …. उसके बोबे बाहर छलक पड़े। उसके ब्रा भी नहीं पहनी थी ….यानि चुदने के लिये वो बिल्कुल तैयार थी। मेरा लण्ड उसके चूतड़ों पर लगने लगा था। कुछ ही देर में वो बैचेन हो उठी ….
“सुनो जी …. अब देरी किस बात की है ….”कह कर वो बुरी तरह लाल हो गई। मैं उसकी इस अदा पर मर गया …. मैंने उसे गोदी में से उतार कर खड़ा कर दिया और अपनी पेन्ट उतार दी …. वो शरम से सिमटी जा रही थी …. पर उसने बिस्तर पर आने की देर नहीं की। उसके मन की हलचल मैं समझ रहा था ….लगता था बरसों की प्यासी है ….।
मेरा लण्ड देखते ही वो मचल उठी। उसने मेरा लण्ड अपने हाथो में ले लिया और पकड़ कर दबाने लगी …. लण्ड की चमड़ी ऊपर नीचे करने लगी, इसके कारण मेरा सुपाडा रगड़ खाने लगा ….मुझे तेज मजा आया ….मीठी मीठी सी गुदगुदी उठने लगी । उसने मेरी तरफ़ देखा …. मैं उसे प्यार से देख रहा था ….
“हाय रे ….मेरी तरफ़ मत देखो ना …. उधर देखो ….” और शरमाते हुए मेरे सुपाड़े को अपने मुँह में भर लिया। दोनों हाथो से मेरे चूतड़ भींच लिये और पूरा लण्ड मुँह में भर कर अन्दर बाहर करने लगी। सुपाड़ा जोर से चूस रही थी ….एक तरह से अपने मुँह को चोद रही थी। मेरे मुख से आह निकल रही थी …. कुछ देर तक यही सिलसिला चलता रहा।
उसने फिर कहा-“सुनो जी ….अब देर किस बात की है …. ” फिर से एक बार शरमा गई और फिर वो कहने लगी, “तुम्हे देखते ही मुझे लगा कि तुम मेरे लिये ही बने हो ….तुम्हारे में गजब की कशिश है !”
“सरोज तुम बहुत सेक्सी हो …. देखो मुझे कैसे बस में कर लिया ….”
“मैं बहुत महीनों से प्यासी हूँ ….और मेरी बेटी …. उसकी नजरें भी भटकने लगी थी …. मैंने उसे रंगे हाथो पकड़ लिया था …. तब से मैंने उसे अपना राजदार बना लिया और अब हम सही लड़का देख कर दोनों ही अपनी प्यास शान्त करती हैं ….”
मुझे उसकी बातों से कोई सरोकार नहीं था …. मुझे तो एक बदले दो दो चूत बिना मांगे ही मिल रही थी।
वो कहती जा रही थी ….”विजय से मैं परेशान रहती हूँ ! वो जाने क्या करता है? जाने कहां से नशे की चीज़े लाता है और बेचता है …. हमारे मना करने पर वो हम दोनों को पीटता है ….।”
सरोज की सारी बातें मैं ध्यान में रख रहा था पर उसे यही दर्शा रहा था कि मैं सेक्स में ही रुचि ले रहा हूँ।
“बस सरोज अब चुप हो जाओ, मैं अब से तुम्हारे साथ हूँ …. मजे लो अब ….मेरा देखो न कितना बुरा हाल है ….” मैंने उसकी चूत पर अपना तन्नाया हुआ लण्ड का दबाव देते हुए कहा। उसका शरीर वासना से कसक रहा था। उसकी तड़प मुझे महसूस हो रही थी। मैंने उसके बोबे दाबते हुए नीचे जोर लगाया …. लण्ड चूत में उतरता चला गया। उसकी कसी हुई चूत मेरे लण्ड के चारों ओर मीठा सा घर्षण दे रही थी। उसने अपनी चूत को और ऊपर की ओर उभार ली। मेरा लण्ड अभी भी थोड़ा बाहर था। उसके मुख से सिसकारी निकलती जा रही थी। मुझे लगा कि मेरा लण्ड उसकी चूत की पूरी गहराई में घुस चुका था। पर लण्ड अभी भी बाहर था।
“अब धीरे से बाहर निकाल कर अन्दर और दबाओ ….” उसने सिसकते हुए कहा।
मैंने अपना लण्ड थोड़ा सा बाहर निकाला और अन्दर और दबा दिया। उसे हल्का स दर्द हुआ …. फिर भी बोली,”ऐसा और करो ….”
“पर आपको दर्द हो रहा है ना ….?”
इसी दर्द में तो मजा है ….पूरा घुसेगा तो ही शान्ति मिलेगी ना ….!” उसने दर्द झेलते हुए कहा।
मैंने फिर से लण्ड दबाया …. पर इस बार झटके से पूरा डाल दिया। उसके मुख से हल्की सी चीख निकल गई।
“हाय रे ….! मर गई ….! ये हुई ना मर्दो वाली बात …. ! बस अब थोड़ा रुको ….!” वो अपने स्टाईल में बताते हुए चुदवाने लगी।
उसने कहा,”अब मेरी चूतड़ के नीचे तकिया रख दो …. फिर बस एक धक्का और ….”
“देखो बहुत दर्द होगा ….”
“आज होने दो ….बिना दर्द के मजा नहीं आता है ….”
मैंने उसकी गाण्ड के नीचे तकिया घुसा दिया , उसकी चूत ऊपर की ओर उठ गई और मैंने इस बार पूरा जोर लगा कर लण्ड को चूत में गड़ा दिया। दर्द से उसने दांत भींच लिये और मैंने अब उसके बोबे थामें और मसलते हुए धीरे धीरे पर गहराई तक चोदने लगा। वो पसीने में नहा चुकी थी। उसका सारा बदन उत्तेजना से कांप रहा था। मैं भी अपना आपा खोता जा रहा था। उसकी टाईट चूत मेरे लण्ड को लपेट कर सहला रही थी।
उसने कहा,”राजा …. तेजी से चोदो ना ….आज मुझे मस्त कर दो ….”
मेरे धक्के तेज होते गये। उसकी सिसकारियाँ बढ़ती गई। वो अपने पूरे जोश से अपने चूतड़ हिला हिला कर चुदवा रही थी। अचानक मुझे लगा कि उसका कसाव मेरे पर बढ़ गया है …. और वो झड़ने लगी।
मैंने उस ओर ध्यान नहीं दिया ….और चुदाई जारी रखी। झड़ कर भी वो उसी जोश में चुदवाती रही …. मैंने उसे चूम चूम कर उसका चेहरा अपने थूक से गीला कर दिया था। वो भी बराबरी से मुझे चाट रही थी। अचानक उसने मुझे इशारा किया और वो मेरे ऊपर आ गई। आसन बदल लिया। वो मेरे पर झुक गई और लण्ड चूत में घुसा कर जबरदस्त धक्के मारने लगी। उसके बोबे जोर जोर से उछल रहे थे। मैंने दोनों बोबे को कस के मसलना शुरू कर दिया। उसके धक्के इतने जबर्दस्त थे कि उसे भी शायद तकलीफ़ हो रही होगी। लगता था जन्म-जन्म की प्यास बुझाना चाहती थी।
कुछ ही देर में मैं भी चरमसीमा पर पहुंच गया और और चूत के अन्दर ही लण्ड ने अपनी पिचकारी छोड़ दी। वो कब झड़ गई मुझे पता नहीं चला। पर हाफ़ते हुए मेरे पर लेट गई। उसका जिस्म पसीने में तर था। हम दोनों एक दूसरे से लिपटे हुए कुछ देर पड़े रहे। फिर मैं धीरे से उठा।
“सरोज तुम तो चुदाई में मस्त हो …. मेरा सारा माल निकाल दिया ….” सरोज फिर से शरमा गई।
“मैं तो दो बार झड़ गई …. हाय राम …. मेरा पेटीकोट तो दे दो ….” उसने झट से कपड़े पहन लिये।
मैंने भी कपड़े पहने और पूछा,”बाथरूम किधर है ….” उसने उंगली से इशारा कर दिया। मैं बाथरूम में गया और अपना मुख धो लिया ….तभी मेरी नजर हैंगर पर टंगे जैकेट पर पड़ी। वो विजय का था। मैंने तुरन्त उसकी तलाशी ली। उसमें कोई शायद नशे की कोई चीज़ थी। उसमें एक पिस्तौल भी था। सारी चीज़े यथावत रख कर मैं बाहर आ गया।
“अच्छा अब मैं चलता हूँ ….” उसने मुस्करा कर हामी भर दी ….
मैं जैसे ही बाहर निकला, मेरा मन एकदम धक से रह गया, दिव्या एक कुर्सी पर बैठी कोई मेग्ज़ीन देख रही थी।
“त् ….त् …. तुम ….कॉलेज नहीं गई ….?”
“और यहां की चौकीदारी कौन करता ….??? …. कल आओगे ना ….” उसने एक सेक्सी नजर डालते हुए कहा।
“कल ….तुम्हारी बारी है …. तैयार रहना ….!” मै धीरे से झुक कर बोला…
उसकी मुस्कान और झुकी झुकी नजरें उसकी स्वीकृति दर्शा रही थी ….।
समय देखा साढ़े दस बज रहे थे …. मैंने अपनी मोटर साईकल उठाई और सीधे पुलिस स्टेशन पहुंचा। अंकल मेरा ही इन्तज़ार कर रहे थे।
मैंने उन्हें एक एक करके सब बताना शुरु कर दिया,”अंकल, विजय के अलावा, हैप्पी, सुरजीत और मोन्टी है, चारों एक ही गांव के है …. हेप्पी टूसीटर चलाता है और नशे की चीजें बेचता है। मोन्टी किसी एजेन्ट से ये नशीली चीज़े लाता है। सुरजीत अवैध दारू के पाऊच लाता है और पानवाले के पास रखता है। विजय के पास भी घर पर ये नशे की चीज़े हैं और एक पिस्तौल भी है। और …. ….”सारी रिपोर्ट बताता रहा और रिपोर्ट देने के बाद मैंने उनसे एक दिन का समय और मांगा।
अंकल ने सारी बाते समझ ली थी। अंकल शहर के एस पी थे ….उन्हें शक तो पहले ही था पर नेहा के कहने पर उन्होंने कार्यवाही का वचन दिया था। उन्होंने जरूरी बातें अपनी डायरी में नोट कर ली।
मैं यहाँ से सीधा कामिनी से मिलने नेहा के घर चला आया था …. आज वो बहुत बेहतर लग रही थी …. चल फिर रही थी …. उसमें ताकत आ गई थी।
मैंने जब अपनी बात उसे बताई तो वह सन्तुष्ट नजर आई, पर खुद को रोने से नहीं रोक पाई। अंतत: वो फ़फ़क के फिर रो से पड़ी।
टूटा हुआ मन, आहत भावनाएं ! Hindi Porn Stories