मेरे कुंवारे लंड का उद्घाटन कुंवारी चूत से हुआ

वर्जिन बॉय फर्स्ट Xxx स्टोरी में मैं पढ़ाई केर लिए किराये के कमरे में रहता था. माकन मालकिन की भतीजी उनके पास रहने आई तो वह मुझसे घुल मिल गयी और एक दिन उसने सेक्स की पहल की.

दोस्तो, कैसे हैं आप सभी … मेरा नाम संदीप यादव है. मैं बिहार का रहने वाला हूं.

मैं अन्तर्वासना का 6 साल से फैन हूं. यहां की लगभग सभी सेक्स कहानियां मैंने पढ़ी हैं.
इस कारण से मुझे पेलाई का पूरा ज्ञान तो हो गया था, पर कभी चुदाई करने का मौका नहीं मिला था.

मैंने सोचा कि जब भी चुदाई करने का मौका मिलेगा, तो मैं उसे आप सभी के साथ साझा करूंगा.

ये मेरी पहली सेक्स कहानी है … मेरी वर्जिन बॉय फर्स्ट Xxx स्टोरी एकदम सच है.

दोस्तो, जब ये वाकया हुआ था, तब मेरी उम्र 26 साल की थी. मेरी हाईट 5 फुट 6 इंच है और रंग भी काफी गोरा है.
बचपन से ही मेरा खानपान अच्छा रहा है, जिससे मेरा स्वास्थ भी काफी अच्छा है.

अपने घर में सबसे छोटा होने की वजह से घर और बाहर के सभी काम मैं ही करता था, जिससे काफी फिट और मजबूत भी हूं.
साथ ही पढ़ाई में भी अच्छा हूँ और आज्ञाकारी होने की वजह से सबका दुलारा भी हूँ.

मेरा अब तक किसी भी लड़की से कोई प्रेम संबंध भी नहीं था, पर कोचिंग की कई लड़कियां मुझे पसंद करती थीं क्योंकि पढ़ाई के साथ साथ मेरा व्यवहार भी अच्छा था.
मैं सबके डाउट्स भी क्लियर कर देता था.

किसी से प्रेम संबंध न होने की वजह से तब तक मेरे लौड़े का टांका भी नहीं टूटा था.
मेरे लंड का आकार भी मस्त है.
यह साढ़े छह इंच लम्बा और ढाई इंच मोटा था. मेरा लंड किसी को भी संतुष्ट कर सकता था.

यह बात मुझे उसी लड़की ने बताई थी जिसकी चूत में पहली बार मेरे लौड़े ने घुस कर चुदाई की शुरुआत की थी.
उस लड़की का नाम लाली था.

उस वक्त मेरे लंड के टोपे पर खाल चढ़ी थी; उसे थोड़ा भी पीछे खिसकाने पर काफी दर्द होता था.
चुदाई के समय वह खाल फट गई थी और काफी दिन तक जख्म ठीक नहीं हुआ था.

मेरी स्नातक की पढ़ाई पूरी होने के कुछ साल बाद मेरे घर वालों ने मुझे आगे की तैयारी करने के लिए दिल्ली भेज दिया था जहां मैं बहुत मन लगाकर अपनी पढ़ाई में लग गया.
जहां मैं रहता था, वह एक पांच माले की बिल्डिंग थी.
उसमें मैं चौथे माले पर सिंगल और अटैच बाथरूम वाले कमरे में रहता था.

वहीं ग्राउंड फ्लोर पर किराए से एक 42 साल की आंटी रहती थीं जो टिफिन सप्लाई करती थीं व अपने घर में ही बैठा कर सबको खाना खिलाती थीं.
उन्होंने अपने घर से ही टिफिन सेवा का छोटा सा बिजनेस सैट कर रखा था.

उनके घर कई लड़के खाने आते या टिफिन मांगते.
उनकी अपने पति से बिल्कुल भी नहीं बनती थी. वे दोनों हमेशा अलग ही रहते थे.

जब मेरा मन होता तो वैसे ही खाना खा लेता था और आंटी की भी थोड़े पैसे से या फिर और भी किसी तरह से मदद कर दिया करता था.
मेरी इस बात से आंटी से मेरी काफी अच्छी दोस्ती हो गई थी.

वे अपने सारे सुख दुख व्हाट्सएप पर मुझसे शेयर करने लगी थीं.
फिर कुछ दिन बाद उनकी भतीजी लाली आ गई.
उसकी उम्र 21 साल थी.
वह थोड़ी दुबली पतली और सांवली सी थी.

लाली अपनी चाची के घर कुछ दिनों के लिए रहने आई थी.
मेरा ये वाकया उसी के साथ हुआ था.

वह भी अपनी चाची के घर आते ही काम में मदद करने लगी थी. वह काफी सारे लोगों से और मुझसे भी घुल-मिल गई थी.

अब तो वह कभी कभी कुछ बहाने से मेरे रूम में भी आ जाती थी.
लेकिन मुझे पता नहीं चला कि वह मेरे पास क्यों आती है … और ना ही मैंने उस पर कभी ज्यादा ध्यान दिया.

फिर एक दिन जब दोपहर में मेरे अगल बगल वाले कमरे में कोई नहीं था.
मैं सिर्फ तौलिया लपेटे और बनियान पहने अपनी पढ़ाई कर रहा था.

तब वह अचानक से मेरे कमरे में आ गई और बोली- मैं कपड़े सुखाने आई थी. नीचे सब सो रहे हैं और मुझे नींद नहीं आ रही थी, तो मैं आ गई. तुम्हें कोई दिक्कत तो नहीं है?
मैं बोला- नहीं, कोई दिक्कत नहीं है.

वह मेरे बगल में बैठ कर पूछने लगी- क्या पढ़ रहे हो?

मैंने उसे अपनी किताब दिखा दी.
वह हंस कर बोली- मुझे कुछ समझ नहीं आएगा.

शायद वह ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी, पर काफी समझदार थी.
वह यह सब बोल कर मुझसे चिपकती जा रही थी.

मैं उससे दूर होने लगा, तो उसने मेरा तौलिया पकड़ लिया और मुझे बेड पर धकेल कर मेरे पास बैठ गई.

मैं- तू पागल हो गई है क्या?
वह- हां, मैं पागल ही हो गई हूं आपको देख कर … मैं आपको कब से लाइन दे रही हूं और आज बड़ी मुश्किल से मौका मिला है. इसलिए आपके पास आ गई हूं. पर आप समझते ही नहीं हैं.

यह बोल कर लाली नाराज़ सी हो गई.

मैं सब समझ रहा था.
अब तक मेरा लंड भी फन मारने लगा था.
तब भी मैं अंजान बना रहा.

मैं- अरे तो तू ऐसे नाराज़ क्यों हो रही है? अच्छा तू बता … क्या चाहिए तुझे … पैसे चाहिए क्या?
वह गुस्से से देखते बोली- नहीं, आप दूध पीते बच्चे नहीं हो, जो हर एक बात मैं ही बताऊं.

यह बोल कर वह मेरा हाथ अपने सीने के पास ले जाने लगी और मेरी जांघों पर लेटने सी लगी.
अब स्थिति मेरे आपे से बाहर जाने लगी. मैं भी इतना सीधा नहीं था कि कुछ समझ ही न पाऊं.

मैं फटाक से उठ गया और दरवाजे बंद करने आ गया.
मैंने देखा कि दरवाजे के बाहर उसकी चप्पलें पड़ी थीं. मैंने इधर उधर देखा और उसकी दोनों चप्पलों को उठा कर अन्दर करके दरवाजा लगा लिया.

उसकी चप्पलों से किसी को ये शक हो सकता था कि मेरे अन्दर से बंद कमरे में कोई लड़की है.
कोई बवाल न हो जाए तो मैंने जल्दी से यह सब किया और दरवाज़ा बंद कर दिया.

वापस आकर मैं लाली से लिपट गया और उसे चूमने लगा.
यह तो आप भी जानते हैं कि लड़की खुद से पहल कर रही थी और मैं बंद कमरे में उसके साथ था.

ऐसी स्थिति में बुर चुदने को रेडी हो, तो किसी भी लड़के का मूड बन जाएगा.

बस कोई प्यार और इज्जत से मजा लेता है तो कोई धोखा या पैसा देकर चूत चुदाई कर लेता है.

मुझे भी बुर चाहिए थी लेकिन इज्जत और सम्मान से.
अब हमारे होंठ आपस में कब मिल गए, हमें पता ही नहीं चला.

मुझे जो भी करना था, जल्दी करना था क्योंकि हमारे पास ज्यादा समय नहीं था.
जल्द ही उसको ढूंढते हुए उसकी चाची की दस साल की लड़की कभी भी आ सकती थी.

मैं लाली के होंठों को दस मिनट तक चूसता रहा.
वह भी मेरे लंड के आसपास हाथ घुमाती रही.

मैं उसके बूब्स दबाने लगा जो कि मध्यम आकार के थे.
मुझे उसके दूध दबाने में बड़ा मजा आ रहा था.

यह मेरा पहली बार का मामला था, जब मैंने किसी के मम्मों को ऐसे पकड़ा था.

कुछ देर बाद मैंने उसको अपने आप से अलग किया और गद्दे को बेड से निकाल कर नीचे फर्श पर बिछा दिया.
ऐसा इसलिए किया था कि मेरा बेड चूं चूं करता था और उस पर कबड्डी खेलता, तो ज्यादा आवाज होने लगती.

मैंने उसको नीचे लिटा दिया और उसके ऊपर चढ़ गया.
मैं उसके कपड़े उतारने लगा, तो वह शरमा कर मना करने लगी.

पर अब तो मेरे मुँह को खून लग चुका था और मैं उसे छोड़ना भी नहीं चाहता था.
जैसे तैसे करके मैंने उसके कपड़े खोल कर दूर फेंक दिए.

मेरे सामने लाली सिर्फ पैंटी में थी और मैं जांघिया में था.
मेरा जाँघिया आगे से मेरे कामरस से काफी भीग गया था. मैंने ऊपर बनियान पहनी हुई थी.

इस धक्का मुक्की में मेरा तौलिया कब नीचे को सरक गया था, मुझे पता भी नहीं चला.
मैंने उसकी एक चूची को अपने मुँह में भर लिया और खींचते हुए चूसने लगा.

साथ ही एक हाथ से मैं उसकी पैंटी के ऊपर से ही बुर को सहलाने लगा.
उसकी बुर काफी गर्म और गीली हो चुकी थी.

मुझे उसकी बुर चाटने का बड़ा मन था पर समय न होने के कारण उसकी पैंटी को खोल कर सूंघा और उसे दूर फेंक दिया.

फिर मैंने उसकी नमकीन बुर पर एक गहरा चुम्बन किया और अपना जांघिया भी उतार दिए.

अब मैंने उसके मुँह के पास अपने लौड़े को ले गया.
मैंने लंड को उसके होंठों के ऊपर रखा, तो वह मेरी इच्छा समझ गई.
उसने मुँह खोल दिया और लंड का चूसन कांड शुरू गया.

उस वक्त मैं सिर्फ एक बनियान में था.
मेरा लंड अपनी पूरी सख्ती पर था और उसके होंठों पर लार टपका रहा था.

वह अपनी जीभ से लंड से टपकने वाले शीरा को चाट कर मेरे रस का स्वाद लेने लगी.

मेरे लंड को देखते ही उसकी आंखें बड़ी हो गई थीं.
फिर वह सामान्य होकर सुपाड़े को मुँह में भरकर चूसने लगी.

वह सुपारे को अपने होंठों में दबा कर रगड़ रगड़ लंड की मां बहन करने लगी.
उसकी इस हरकत से मैं जल्दी झड़ जाने के डर से हटने लगा.
वह मेरे लंड को पकड़ कर उसे बार बार मुँह में लेने की कोशिश करने लगी.

मैं लंड हटा कर नीचे हो गया और चुदाई की पोजीशन में उसके ऊपर चढ़कर उसके होंठों को चूसने लगा.
उस वक्त मैं अपनी कमर हिला हिला कर अपने सख्त और मोटे लंड को उसकी गर्म गीली बुर पर रगड़ने लगा.

यह उसे भी अच्छा लगने लगा. उसने भी अपनी टांगें खोल दीं और अपनी चूत को लंड से रगड़वाने लगी.
अब हमारे कामरस आपस में मिल कर एक अलग ही लुब्रीकेंट का काम करने लगे थे.

इस क्रिया से मेरे अंडे भी गीले हो गए थे.
वह बोली- अब डाल दो अन्दर … मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा.

मैं बोला- थोड़ा दर्द होगा तो बर्दाश्त कर लेना!
उस समय तक मुझे नहीं पता था कि वह कुंवारी है या नहीं. मुझे इससे मतलब भी नहीं था क्योंकि मुझे पहली बार बुर का स्वाद मिलने जा रहा था.

उसने अपनी मौन स्वीकृति दे दी.

अब मैं भी जल्दी से अपने लौड़े के सुपारे को उसकी गीली चिकनी बुर की फांक में रगड़ने लगा.
उसकी बुर पर थोड़ी झांटें थीं, जबकि मैं अपने लंड को एकदम चिकना करके रखता था.

चिकने लौड़े को हाथ से पकड़ कर वह मेरी तरफ देख रही थी और एक अर्थ भरी मुस्कान देती जा रही थी.

मैंने पूछा- कैसा है?
वह बोली- एकदम चिकना है!

मैंने कहा- और तेरी चूत जंगली है.
वह हंस दी और बोली- कल से साफ मिलेगी.

अब मैंने उसकी बुर पर लंड सैट कर दिया और जैसे ही अन्दर पेलने के हिसाब से दबाया तो कुछ अधिक ही चिकनाई की वजह से लौड़ा फिसल गया.

वह हंसने लगी और बोली- चिकना है ना!
उसकी इस टिप्पणी से मेरी झांटें सुलग गईं.

मैंने फिर से कोशिश की तो इस बार मेरा आधा सुपारा एक गीली तंग सुरंग में फंस सा गया.
अब वह सिसकारी मारने लगी.

कुछ सेकेंड के बाद मैंने फिर से एक झटका मारा तो मेरा पूरा मोटा सुपारा उसकी बुर में घुस गया.
उसके हाथ में हाथ, होंठों पर होंठ रखने की वजह से न वह हिल पा रही थी और न ही आवाज कर सकी.

फिर मैंने उसके पैरों को अपनी गांड पर लपेटवा लिया जिससे लौड़े को घुसने में आसानी हो.

कुछ क्षण बाद मैंने एक और धक्का दिया ही था कि उसकी बुर में मेरा पूरा लौड़ा जड़ तक घुसता चला गया.
यह ऐसे हुआ, जैसे अंजाने में कोई सही काम पूरा हो जाता है.

उसकी झांटें मेरे लंड की जड़ में चुभने लगीं.
उसको तो जो दर्द हुआ सो हुआ और वह भी कुंवारी थी, तभी मुझे ये बात पता चली.

उस वक्त मुझे ऐसा लगा जैसे लौड़े को किसी ने अपनी मुट्ठी में दबोच रखा हो.
साथ ही ऐसा भी लगा जैसे मेरा सुपारा उसकी बच्चेदानी में घुस गया था.

मेरा भी टांका टूटने से बहुत दर्द होने लगा.
लेकिन मुझे पता था कि ये दर्द मुझे एक न एक दिन होना ही है, तो आज ही सही.

जैसे ही मुझे पता चला कि उसका भी पहली ही बार था. तो यह जान कर मुझे बहुत अच्छा लगा कि कंडोम की यहां कोई जरूरत नहीं थी.
क्योंकि वैसे भी मेरे पास उस समय नहीं था.

जैसे ही उसके होंठ को छोड़कर मैंने उसके चेहरे का भाव देखना चाहा, तो वह चिल्लाने ही वाली थी कि मैंने वापस से उसके होंठों को अपने होंठों से लॉक कर दिया.

उसकी घुटी सी आवाज निकली- साले मादरचोद फट गई मेरी … आह.
पर उसकी यह गाली भरी आवाज मेरे मुँह में ही दबकर रह गई.

मेरा मन हंस रहा था और यह कहने को आतुर था कि हां साली कुतिया मेरा लंड चिकना है न!

लेकिन मैंने अपना मुँह उसके मुँह से नहीं हटाया.
ये सेक्स कहानी लिखते हुए अभी भी मुझे दो बार मुठ मारनी पड़ी थी.

कुछ देर बाद वह अपनी कमर हिलाने लगी, तो मैं समझ गया कि इसको अब पेलाई चाहिए.
मैं भी फिर धीरे धीरे धक्के लगाने लगा और धक्कों की गति कब चौथे गियर पर चढ़ गई, मुझे भी पता नहीं चला.

मैं उसकी चूचियों को दबाते हुए उसकी बुर में धक्के पर धक्का लगाने लगा, जिससे गच गच … फच फच … चट चट गप गप … और न जाने कैसी कैसी आवाजें आने लगीं.

यह हमारे मिले-जुले कामरस का कमाल था, जिससे मेरे अंडे और लंड की जड़ सब गीले हो चुके थे.

मेरा गद्दा भी उसके और मेरे टांके के खून से सन गया था.
मुझे अभी भी अहसास हो रहा था कि मेरा कामरस अभी भी निकल निकल कर उसकी बुर में गिर रहा था.

उसकी चूचियां हिल हिल कर अपनी ख़ुशी जाहिर कर रही थीं.
इससे हम दोनों को बहुत मजा आ रहा था.

फिर रुक रुक कर लंबे धक्के मार मार कर करीब 20-25 मिनट तक चोदने के बाद मैं झड़ने को हो गया था.

तब तक वह दो बार झड़ चुकी थी.
उसने मुझे भी बांहों में जकड़ रखा था और उसके पैर अभी भी मेरी कमर से लिपटे हुए थे.

मैंने काफी दिनों से मुठ भी नहीं मारी थी जिससे मेरा काफी रस इकट्ठा हो गया था.
इतनी लंबी चुदाई होने के बाद अब मेरा रुकना असंभव था तो उसकी बुर में जड़ तक लौड़ा ठांस के झड़ने लगा.

उसके बाद 1, 2, 3, 4 … न जाने कितनी लंबी पिचकारियां मेरे लंड से निकल कर उसकी बुर के रास्ते बच्चेदानी में गिरने लगीं.
मैं आंखें बंद करके न जाने कितनी देर तक उसके अन्दर झड़ता रहा.

मेरे साथ वह भी झड़ गई थी.
हम दोनों की सांसें ट्रेन की तरह दौड़ रही थीं.
दोनों अभी भी एक-दूजे की बांहों में चिपके पड़े थे.

कुछ मिनट बाद मैंने उसकी बुर से लौड़े को धीरे धीरे निकाला.

मेरा लंड अभी भी पूरे वेग से खड़ा था.
मैं दूसरा राउंड भी लगाता लेकिन हमारे पास समय बिल्कुल भी नहीं था.

मेरे लौड़े की चमड़ी पूरी खिसक कर नीचे आ गई थी.
मेरी और उसकी जांघों पर काफी खून भी लगा था.
यह नजारा देख वह घबरा गई.

फिर मेरे समझाने पर समझ भी गई.

उसकी बुर की पुत्तियां भी फैल कर सूज गई थीं.
मेरे अंडे भी पूरे गीले हो गए थे और गद्दा भी खून से सना था.

मेरे और उसके मिले हुए रस के कतरे बाहर आने लगे थे.

उसने मेरे रूमाल से सब साफ़ करके रूमाल को अपने पास रख लिया.
मैं भी कुछ नहीं बोला कि शायद वह अपनी पहली चुदाई की निशानी रखना चाहती हो.

उसके चेहरे पर एक दर्द भरी मुस्कान थी, जिसे देख मुझे भी सुकून मिला.

फिर मैंने पूछा- क्या तुम्हें यही चाहिए था?
यह कह कर मैंने आंख मार दी, तो वह मुस्कुरा कर अपने कपड़े पहन कर नीचे चली गई.

अब जब भी उसका मन होता, तो वह मेरे रूम में किसी बहाने से आ जाती या फिर मैं ही इशारे से उसे अपने कमरे में आने की कह देता.
वह आ जाती और मैं उसको जमकर पेलता.

बाद में मैंने उसकी गांड का भी उद्घाटन किया.
अगर वह रंगीन सेक्स कहानी भी आपको जानना हो, तो मुझे मेल करें.

उसके बाद मैंने अपनी इच्छा को पूरा किया. उसकी बुर चाटकर और अपना पूरा लौड़ा और आंड चुसवाकर मजा लिया.

वह लगभग 3 महीने वहां रही और लगभग हर दो तीन दिनों में हमारा काम लगने लगा था.
इससे मेरा लौड़ा और मजबूत और मस्त हो गया था.

उसकी पूरी खाल नीचे आकर पूरा सुपारा खुलने लगा था.
लाली गर्भ से न हो जाए इसलिए उसको बीच बीच में गोली भी देता रहा लेकिन मैंने कभी कंडोम इस्तेमाल नहीं किया.

अब उसकी चूत पूरी तरह से मैंने खोल दिया था.
यह बात किसी को भी पता नहीं चल पाई थी.

पर शायद आंटी समझ गई थीं.
उन्होंने भी कुछ नहीं कहा था तो मैं अब लाली को बिंदास चोदने लगा था.

कुछ समय बाद मैं कुछ दिनों के लिए अपने घर चला गया.
जब वापस आया तब तक वह भी अपने घर चली गई थी.

मैं बहुत उदास हो गया था.

लाली के बाद आंटी मेरे लौड़े का सहारा कैसे बनी, यह मैं अगली कहानी में बताऊंगा.

एक साल बाद मेरी भी एक अच्छी सरकारी नौकरी लग गई और मैं भी वहां से चला आया.

वह लड़की वहां पर फिर से आ गई थी पर अब मैं वहां नहीं था.

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