Hindi Sex Stories
मास्टरजी के घर से Hindi Sex Stories चोरों की तरह निकल कर घर जाते समय सुलेखा का दिल जोरों से धड़क रहा था। उसके मन में ग्लानि-भाव था।
साथ ही साथ उसे ऐसा लग रहा था मानो उसने कोई चीज़ हासिल कर ली हो। मास्टरजी को वशीभूत करने का उसे गर्व सा हो रहा था।
अपने जिस्म के कई अंगों का अहसास उसे नए सिरे से होने लगा था। उसे नहीं पता था कि उसका शरीर उसे इतना सुख दे सकता है। पर मन में चोर होने के कारण वह वह भयभीत सी घर की ओर जल्दी जल्दी कदमों से जा रही थी।
जैसे किसी भूखे भेड़िये के मुँह से शिकार चुरा लिया हो, मास्टरजी गुस्से और निराशा से भरे हुए दरवाज़े की तरफ बढ़े। उन्होंने सोच लिया था जो भी होगा, उसकी ख़ैर नहीं है।
‘अरे भई, भरी दोपहरी में कौन आया है?’ मास्टरजी चिल्लाये।
जवाब का इंतज़ार किये बिना उन्होंने दरवाजा खोल दिया और अनचाहे महमान का अनादर सहित स्वागत करने को तैयार हो गए। पर दरवाज़े पर सुलेखा की छोटी बहन अंजलि को देखते ही उनका गुस्सा और चिड़चिड़ापन काफूर हो गया।
अंजलि हाँफ रही थी।
‘अरे बेटा, तुम? कैसे आना हुआ?’
‘अन्दर आओ। सब ठीक तो है ना?’ मास्टरजी चिंतित हुए। उन्हें डर था कहीं उनका भांडा तो नहीं फूट गया…
अंजलि ने हाँफते हाँफते कहा- मास्टरजी, पिताजी अचानक घर जल्दी आ गए। दीदी को घर में ना पा कर गुस्सा हो रहे हैं।’
मास्टरजी- फिर क्या हुआ?’
अंजलि- मैंने कह दिया कि सहेली के साथ पढ़ने गई है, आती ही होगी।’
मास्टरजी- फिर?’
अंजलि- पिताजी ने पूछा कौन सहेली? तो मैंने कहा मास्टरजी ने कमज़ोर बच्चों के लिए ट्यूशन लगाई है वहीं गई है अपनी सहेलियों के साथ।’
अंजलि- मैंने सोचा आपको बता दूं, हो सकता है पिताजी यहाँ पता करने आ जाएँ।’
मास्टरजी- शाबाश बेटा, बहुत अच्छा किया!! तुम तो बहुत समझदार निकलीं। आओ तुम्हें मिठाई खिलाते हैं।’ यह कहते हुए मास्टरजी अंजलि का हाथ खींच कर अन्दर ले जाने लगे।
अंजलि- नहीं मास्टरजी, मिठाई अभी नहीं। मैं जल्दी में हूँ। दीदी कहाँ है?’ अंजलि की नज़रें सुलेखा को घर में ढूंढ रही थीं।
मास्टरजी- वह तो अभी अभी घर गई है।’
अंजलि- कब? मैंने तो रास्ते में नहीं देखा…’
मास्टरजी- हो सकता है उसने कोई और रास्ता लिया हो। जाने दो। तुम जल्दी से एक लड्डू खा लो।
मास्टरजी ने अंजलि से पूछा- तुम चाहती हो ना कि दीदी के अच्छे नंबर आयें? हैं ना?
अंजलि- हाँ मास्टरजी। क्यों?
मास्टरजी- मैं तुम्हारी दीदी के लिए अलग से क्लास ले रहा हूँ। वह बहुत होनहार है। क्लास में फर्स्ट आएगी।
अंजलि- अच्छा?
मास्टरजी- हाँ। पर बाकी लोगों को पता चलेगा तो मुश्किल होगी, है ना?
अंजलि ने सिर हिला कर हामी भरी।
मास्टरजी- तुम तो बहुत समझदार और प्यारी लड़की हो। घर में किसी को नहीं बताना कि दीदी यहाँ पर पढ़ने आती है। माँ और पिताजी को भी नहीं… ठीक है?
अंजलि ने फिर सिर हिला दिया…
मास्टरजी- और हाँ, सुलेखा को बोलना कल 11 बजे ज़रूर आ जाये। ठीक है? भूलोगी तो नहीं, ना?
अंजलि- ठीक है। बता दूँगी…
मास्टरजी- मेरी अच्छी बच्ची!! बाद में मैं तुम्हें भी अलग से पढ़ाया करूंगा।’ यह कहते कहते मास्टरजी अपनी किस्मत पर रश्क कर रहे थे। सुलेखा के बाद उन्हें अंजलि के साथ खिलवाड़ का मौक़ा मिलेगा, यह सोच कर उनका मन प्रफुल्लित हो रहा था।
मास्टरजी- तुम जल्दी से एक लड्डू खा लो!
‘बाद में खाऊँगी’ बोलते हुए वह दौड़ गई।
अगले दिन मास्टरजी 11 बजे का बेचैनी से इंतज़ार रहे थे। सुबह से ही उनका धैर्य कम हो रहा था। रह रह कर वे घड़ी की सूइयाँ देख रहे थे और उनकी धीमी चाल मास्टरजी को विचलित कर रही थी।
स्कूल की छुट्टी थी इसीलिये उन्होंने अंजलि को ख़ास तौर से बोला था कि सुलेखा को आने के लिए बता दे। कहीं वह छुट्टी समझ कर छुट्टी न कर दे।
वे जानते थे 10 से 4 बजे के बीच उसके माँ बाप दोनों ही काम पर होते हैं। और वे इस समय का पूरा पूरा लाभ उठाना चाहते थे।
उन्होंने हल्का नाश्ता किया और पेट को हल्का ही रखा। इस बार उन्होंने तेल मालिश करने की और बाद में रति-क्रिया करने की ठीक से तैयारी कर ली।
कमरे को साफ़ करके खूब सारी अगरबत्तियाँ जला दीं, ज़मीन पर गद्दा लगा कर एक साफ़ चादर उस पर बिछा दी।
तेल को हल्का सा गर्म कर के दो कटोरियों में रख लिया। एक कटोरी सिरहाने की तरफ और एक पायदान की तरफ रख ली जिससे उसे सरकाना ना पड़े।
साढ़े 10 बजे वह नहा धो कर ताज़ा हो गए और साफ़ कुर्ता और लुंगी पहन ली। उन्होंने जान बूझ कर चड्डी नहीं पहनी।
उधर सुलेखा को जब अंजलि ने मास्टरजी का संदेशा दिया तो वह खुश भी हुई और उसके हृदय में एक अजीब सी कूक भी उठी।
उसे यह तो पता चल गया था कि मास्टरजी उसे क्या ‘पढ़ाने’ वाले हैं।
उसके गुप्तांगों में कल के अहसासों के स्मरण से एक बिजली सी लहर गई।
उसने अपने हाव भाव पर काबू रखते हुए अंजलि को ऐसे दर्शाया मानो कोई ख़ास बात नहीं है। बोली- ठीक है… देखती हूँ… अगर घर का काम पूरा हो गया तो चली जाऊँगी।
अंजलि- दीदी तुम काम की चिंता मत करो। छुटकी और मैं हैं ना… हम सब संभाल लेंगे। तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो।
उस बेचारी को क्या पता था कि सुलेखा को ‘काम’ की ही चिंता तो सता रही थी। छुटकी, जिसका नाम दीप्ति था, अंजलि से डेढ़ साल छोटी थी।
तीनों बहनें मिल कर घर का काम संभालती थीं और माँ बाप रोज़गार जुटाने में रहते थे।
सुलेखा- तुम बाद में माँ बापू से शिकायत तो नहीं करोगे?
अंजलि- हम उन्हें बताएँगे भी नहीं कि तुम मास्टरजी के पास पढ़ने गई हो। हमें मालूम है बापू नाराज़ होंगे… यह हमारा राज़ रहेगा, ठीक है!!
सुलेखा को अपना मार्ग साफ़ होता दिखा। बोली- ठीक है, अगर तुम कहती हो तो चली जाती हूँ।
‘पर तुम्हें भी हमारा एक काम करना होगा…’ अंजलि ने पासा फेंका।
‘क्या?’
‘मास्टरजी मुझे मिठाई देने वाले थे पर पिताजी के डर से मैंने नहीं ली। वापस आते वक़्त उन से मिठाई लेती आना।’
‘ओह, बस इतनी सी बात… ठीक है, ले आऊँगी।’ तुम ज़रा घर को और माँ बापू को संभाल लेना।’
दोनों बहनों ने साज़िश सी रच ली। छुटकी को कुछ नहीं मालूम था। दोनों ने उसे अँधेरे में रखना ही उचित समझा। बहुत बातूनी थी और उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता था।
सुलेखा अब तैयारी में लग गई, घर का ज़रूरी काम जल्दी से निपटाने के बाद नहाने गई।
उसके मन में संगीत फूट रहा था। वह नहाते वक़्त गाने गुनगुना रही थी। अपने जिस्म और गुप्तांगों को अच्छे से रगड़ कर साफ़ किया, बाल धोये और फिर साफ़ कपड़े पहने।
उसे मालूम था मालिश होने वाली है सो चोली और चड्डी के ऊपर एक ढीला ब्लाऊज और स्कर्ट पहन ली। अहतियात के तौर पर स्कूल का बस्ता भी साथ ले लिया जब कि वह जानती थी इसकी कोई आवश्यकता नहीं होगी।
ठीक पौने ग्यारह बजे वह मास्टरजी के घर के लिए चल दी।
सुलेखा सुनिश्चित समय पर मास्टरजी के घर पहुँच गई।
वे उसकी राह तो बाट ही रहे थे सो वह घंटी बजाती उसके पहले ही उन्होंने दरवाजा खोल दिया।
एक किशोर लड़के की भांति, जो कि पहली बार किसी लड़की को मिल रहा हो, मास्टरजी ने फ़ुर्ती से सुलेखा को बांह से पकड़ कर घर के अन्दर खींच लिया।
दरवाजा बंद करने से पहले उन्होंने बाहर इधर उधर झाँक के यकीन किया कि किसी ने उसे अन्दर आते हुए तो नहीं देखा।
जब कोई नहीं दिखा तो उन्होंने राहत की सांस ली।
अब उन्होंने घर के दरवाज़े पर बाहर से ताला लगा दिया और पिछले दरवाज़े से अन्दर आ गए।
उसे भी उन्होंने कुंडी लगा दी और घर के सारे खिड़की दरवाजों के परदे बंद कर लिए।
सुलेखा को उन्होंने पानी पिलाया और सोफे पर बैठेने का इशारा करते हुए रसोई में चले गए।
अब तक दोनों में कोई बातचीत नहीं हुई थे। दोनों के मन में रहस्य, चोरी, कामुकता और डर का एक विचित्र मिश्रण हिंडोले ले रहा था।
मास्टरजी तो बिल्कुल बच्चे बन गए थे।
सुलेखा के चेहरे पर फिर भी एक शालीनता और आत्मविश्वास झलक रहा था। कल के मुकाबले आज वह मानसिक रूप से ज्यादा तैयार थी। उसके मन में डर कम और उत्सुकता ज़्यादा थी।
मास्टरजी रसोई से शरबत के दो ग्लास ले कर आये और सुलेखा की तरफ एक ग्लास बढ़ाते हुए दूसरे ग्लास से खुद घूँट लेने लगे।
सुलेखा ने ग्लास ले लिया। गर्मी में चलकर आने में उसे प्यास भी लग गई थी।
शरबत ख़त्म हो गया। दोनों ने कोई बातचीत नहीं की। दोनों को शायद बोलने के लिए कुछ सूझ नहीं रहा था। दोनों के मन में आगे जो होने वाला है उसकी शंकाएँ सर्वोपरि थीं।
मास्टरजी ने अंततः चुप्पी तोड़ी- कैसी हो?’
सुलेखा सिर नीचा कर के चुप रही।
‘मालिश के लिए तैयार हो?’
सुलेखा कुछ नहीं बोली।
‘मैं थोड़ी देर में आता हूँ, तुम मालिश के लिए तैयार होकर लेट जाओ।’ यह कहकर मास्टरजी बाथरूम में चले गए।
सुलेखा ने अपने कपड़े उतार कर सोफे पर करीने से रख दिए और चड्डी और चोली पहने ज़मीन पर गद्दे पर लेट गई और चादर से अपने आप को ढक लिया। अपने दोनों हाथ चादर के बाहर निकाल कर दोनों तरफ रख लिए।
मास्टरजी, वापस आये तो बोले- अरे तुम तो सीधी लेटी हो!! चलो उल्टी हो जाओ।’
सुलेखा चादर के अन्दर ही अन्दर पलटने की नाकाम कोशिश करने लगी तो मास्टरजी ने बोला- सुलेखा, अब मुझसे क्या शर्माना। चलो जल्दी से पलट जाओ।’
सुलेखा ने चादर एक तरफ करके करवट ले ली और उल्टी लेट गई। लेट कर चादर ऊपर लेने का प्रयास करने लगी तो मास्टरजी ने चादर परे करते हुए कहा- अब इसकी कोई ज़रुरत नहीं है। ‘
‘और इनकी भी कोई ज़रुरत नहीं है।’ कहते हुए उन्होंने सुलेखा की चड्डी नीचे खींच दी और टांगें उठा कर अलग कर दी। फिर चोली का हुक खोल कर सुलेखा के पेट के नीचे हाथ डाल कर उसे ऊपर उठा लिया और चोली खींच कर हटा दी।
अब सुलेखा बिल्कुल नंगी हो गई थी।
हालाँकि वह उल्टी लेटी हुई थी, उसने अपने हाथों से अपनी आँखें बंद कर लीं उसके नितम्बों की मांसपेशियाँ स्वतः ही कस गईं।
मास्टरजी को सुलेखा की यही अदाएं लुभाती थीं। उन्होंने उसकी पीठ और सिर पर हाथ फेर कर उसका हौसला बढ़ाया और उसकी मालिश करने में जुट गए।
गर्म तेल की मालिश से सुलेखा को बहुत चैन मिल रहा था। कल के मुकाबले आज मास्टरजी ज़्यादा निश्चिंत हो कर हाथ चला रहे थे।
उन्हें सुलेखा के भयभीत हो कर भाग जाने का डर नहीं था क्योंकि आज तो वह सब कुछ जानते हुए भी अपने आप उनके घर आई थी। मतलब, उसे भी इस में मज़ा आ रहा होगा। मास्टरजी ने सही अनुमान लगाया।
थोड़ी देर के बाद मास्टरजी ने सुलेखा के ऊपर घुड़सवारी सा आसन जमा लिया और अपना कुर्ता उतार दिया। अब वे सिर्फ लुंगी पहने हुए थे। लुंगी को उन्होंने घुटनों तक चढ़ा लिया था अपर उनका लिंग अभी भी लुंगी में छिपा था।
इस अवस्था में उन्होंने सुलेखा के पिछले शरीर पर ऊपर से नीचे, यानि कन्धों से कूल्हों तक मालिश शुरू की।
जब वे आगे की तरफ जाते तो जान बूझ कर अपनी लुंगी से ढके लिंग को सुलेखा के चूतड़ों से छुला देते।
कपड़े के छूने से सुलेखा को जहाँ गुलगुली होती, मास्टरजी के लंड की रगड़ से उसे वहीं रोमांच भी होता।
मास्टरजी को तो अच्छा लग ही रहा था, सुलेखा को भी मज़ा आ रहा था।
मास्टरजी ने अपने आसन को इस तरह तय किया कि जब वे आगे को हाथ ले जाएँ, उनका लंड सुलेखा के चूतड़ों के बीच में, किसी हुक की मानिंद, लग जाये और उन्हें और आगे जाने से रोके।
एक दो ऐसे वारों के बाद सुलेखा ने अपनी टाँगें स्वयं थोड़ी खोल दीं जिससे उनका लंड अब सुलेखा की गांड के छेद पर आकर रुकने लगा।
जब ऐसा होता, सुलेखा को सरसराहट सी होती और उसके रोंगटे से खड़े होने लगते।
उधर मास्टरजी को सुलेखा की इस व्यवस्था से बड़ा प्रोत्साहन मिला और उन्होंने जोश में आते हुए अपनी लुंगी उतार फेंकी।
अब वे दोनों पूरे नंगे थे।
मास्टरजी ने सुलेखा के हाथ उसकी आँखों पर से हटा कर बगल में कर दिए। अब वह एक तरफ से कुछ कुछ देख सकती थी।
मास्टरजी ने अपने वार जारी रखे जिसके फलस्वरूप उनका लंड तन कर प्रबल और विशाल हो गया और सुलेखा की गांड पर व्यापक प्रभाव डालने लगा।
मास्टरजी आपे से बाहर नहीं होना चाहते थे सो उन्होंने झट से अपने आप को नीचे की तरफ सरका लिया और सुलेखा की टांगों पर ध्यान देने लगे।
उनके हाथ सुलेखा की जांघों के बीच की दरार में खजाने को टटोलने लगे।
सुलेखा से गुदगुदी सहन नहीं हो रही थी। वह हिलडुल कर बचाव करने लगी पर मास्टरजी के हाथों से बच नहीं पा रही थी। जब कुछ नहीं कर पाई तो करवट ले कर सीधी हो गई, अपनी टाँगें और आँखें बंद कर लीं और हाथों से स्तन ढक लिए।
मास्टरजी इसी फिराक़ में थे। उन्होंने सुलेखा के पेट, पर हाथ फेरते हुए सुलेखा के हाथ उसके वक्ष से हटा दिए।
तेल लगा कर अब वे उसकी छाती की मालिश कर रहे थे। सुलेखा के उरोज दमदार और मांसल लग रहे थे। उसकी चूचियाँ उठी हुई थीं और वह जल्दी जल्दी साँसें ले रही थी।
मास्टरजी का लंड सुलेखा की नाभि के ऊपर था और कभी कभी उनके लटके अंडकोष उसकी योनि के ऊपरी भाग को लग जाते।
सुलेखा बेचैन हो रही थी। उसमें वासना की अग्नि प्रज्वलित हो चुकी थी और उसकी योनि प्रकृति की अपार गुरुत्वाकर्षण ताक़त से मजबूर मास्टरजी के लिंग के लिए तृषित हो रही थी।
सहसा उसकी योनि से द्रव्य पदार्थ रिसने लगा।
सुलेखा की टांगें अपने आप खुल गईं और मास्टरजी के लिंग के अभिवादन को तत्पर हो गईं।
मास्टरजी को समझ आ रहा था। पर वे जल्दी में नहीं थे। वे न केवल अपने लिए इस अनमोल अवसर को यादगार बनाना चाहते थे वे सुलेखा के लिए भी उसके जीवन के सबसे महत्वपूर्ण क्षण को ज़्यादा से ज़्यादा आनंददायक बनाना चाहते थे।
वे उसकी लालसा और बढ़ाना चाहते थे।
उन्होंने आगे खिसक कर सुलेखा की आँखों पर पुच्ची की और फिर एक एक करके उसके चेहरे के हर हिस्से पर प्यार किया।
जब तक उनके लब सुलेखा के अधरों को लगे, सुलेखा मचल उठी थी और उसने पहली बार कोई हरकत करते हुए मास्टरजी को अपनी बाँहों में ले लिया और ज़ोर से उनका चुम्बन कर लिया।
जीवन में पहली बार उसने ऐसा किया था। ज़ाहिर था उसे इस कला में बहुत कुछ सीखना था।
मास्टरजी ने उसे चुम्बन सिखाने के लिए उसके मुँह में अपनी ज़ुबान डाली और उसके मुँह का निरीक्षण करने लगे।
थोड़ी देर बाद, एक अच्छी शिष्या की तरह उसने भी अपनी जीभ मास्टरजी के मुख में डाल कर इधर उधर टटोलना शुरू किया।
अब मास्टरजी सुलेखा के ऊपर लेट गए थे और उनका सीना सुलेखा के भरे और उभरे हुए उरोजों को दबा कर सपाट करने का बेकार प्रयत्न कर रहा था।
सुलेखा की चूचियाँ मास्टरजी के सीने में सींग मार रहीं थीं।
मास्टरजी ने कुछ ही देर में सुलेखा को चुम्बन कला में महारत दिला दी। अब वह जीभ चूसना, जीभ लड़ाना व मुँह के अन्दर के हिस्सों की जीभ से तहकीकात करने में निपुण लग रही थी।
मास्टरजी ने अगले पाठ की तरफ बढ़ते हुए अपने आप को नीचे सरका लिया और सुलेखा के स्तनों को प्यार करने लगे। उसके बोबों की परिधि को अपनी जीभ से रेखांकित करके उन्होंने दोनों स्तनों के हर पहलू को अच्छे तरह से मुँह से तराशा।
फिर जिस तरह कुत्ते का पिल्ला तश्तरी से दूध पीता है वे उसकी चूचियाँ लपलपाने लगे। गुदगुदी के कारण सुलेखा लेटी लेटी उछलने लगी जिससे उसके स्तन मास्टरजी के मुँह से और भी टकराने लगे।
थूक से बोबे गीले हो गए थे और इस ठंडक से उसे सिरहन सी हो रही थी।
अब मास्टरजी ने थोड़ा और नीचे की ओर रुख किया। उसके पेट और नाभि को चाटने लगे। सुलेखा कसमसा रही थी और गुलगुली से बचने की कोशिश कर रही थी। कभी कभी अपने हाथों से उनके सिर को रोकने की चेष्टा भी करती थी पर मास्टरजी उसके हाथों को प्यार से अलग करके दबोच लेते थे।
अब उनका मुँह सुलेखा की योनि के बहुत करीब आ गया था। उसकी योनि पानी के बाहर तड़पती मछली के होटों की तरह लपलपा रही थी।
मास्टरजी ने अपनी जीभ से उसकी योनि के मुकुट मटर की परिक्रमा लगाई तो सुलेखा एक फ़ुट उछल पड़ीं मानो घोड़ी दुलत्ती मार रही हो।
मास्टरजी ने घोड़ी को वश में करने के लिए अपनी पकड़ मज़बूत की और जीभ से उसके भग-शिश्न को चाटने लगे। सुलेखा पूरी ताक़त से अपने आप को मास्टरजी की गिरफ्त से छुटाने का प्रयास कर रही थी।
मास्टरजी ने रहम करते हुए पकड़ ढीली की और अपने जीभ रूपी खोज उपकरण को सुलेखा की योनि के ऊपर लगा दिया।
सुलेखा की दशा आसमान से गिरे खजूर में अटके सी हो रही थी।
उसका बदन छटपटा रहा था। उसकी उत्तेजना चरम सीमा पर पहुँच चुकी थी।
मास्टरजी ने कुछ देर योनि से छेड़छाड़ के बाद अपनी जीभ योनि के अन्दर डाल दी। बस, सुलेखा का संयम टूट गया और वह आनंद से कराहने लगी।
मास्टरजी जान बूझ कर उसकी योनि का रस पान करना चाहते थे जिससे बाद में वे सुलेखा से अपने लिंग का मुखाभिगम आसानी से करवा पायें। जो सुख वे सुलेखा को दे रहे हैं, सूद समेत वापस लेना चाहते थे।
सुलेखा की योनि तो पहले से ही भीगी हुई थी, मास्टरजी की लार से और भी गीली हो गई। अब मास्टरजी को लगा कि वह घड़ी आ गई है जिसकी उन्हें इतनी देर से प्रतीक्षा थी।
उन्होंने ने सुलेखा से पूछा- कैसा लग रहा है?’
सुलेखा क्या कहती, चुप रही।
मास्टरजी- भई चुप रहने से मुझे क्या पता चलेगा… अच्छा, यह बताओ कोई तकलीफ तो नहीं हो रही?’
सुलेखा- जी नहीं!’
मास्टरजी- चलो अच्छा है, तकलीफ नहीं हो रही। तो अच्छा लग रहा है या नहीं?’
सुलेखा चुप रही और अपनी आँखें ढक लीं।
मास्टरजी- तुम तो बहुत शरमा रही हो। शरमाने से काम नहीं चलेगा। मैं इतनी मेहनत कर रहा हूँ, यह तो बताओ कि मज़ा आ रहा है या नहीं?’
यह पूछते वक़्त मास्टरजी ने अपना लंड सुलेखा की चूत से सटा दिया और हल्का हल्का हिलाने लगे। उनके हाथ सुलेखा के पेट और उरोजों पर घूम रहे थे।
‘जी, मज़ा आ रहा है।’ सुलेखा ने सच उगल दिया।
मास्टरजी- तुम बहुत अच्छी लड़की हो। तुम चाहो तो इससे भी ज़्यादा मज़ा लूट सकती हो… ‘
सुलेखा चुप रही पर उसका रोम रोम जो कह रहा था वह मास्टरजी को साफ़ सुनाई दे रहा था। फिर भी वे उसके मुँह से सुनना चाहते थे।
मास्टरजी- क्या कहती हो?’
‘जैसा आप ठीक समझें।’ सुलेखा ने लाज शर्म त्यागते हुए कह ही दिया।
मास्टरजी- मैं तो इसे ठीक समझता ही हूँ पर तुम्हारी सहमति भी तो जरूरी है। बोलो और मज़े लेना चाहती हो?’
सुलेखा ने हाँ मैं सिर हिला दिया।
मास्टरजी- ऐसे नहीं। जो भी चाहती हो बोल कर बताओ!’
सुलेखा- जी, और मज़े लेना चाहती हूँ।’
मास्टरजी- शाबाश। हो सकता है इसमें शुरू में थोड़ी पीड़ा हो। बोलो मंज़ूर है?’
सुलेखा- जी मंज़ूर है।’
मास्टरजी ने अपना लंड सुलेखा के योनि द्वार पर लगा ही रखा था। जैसे ही उसने अपनी मंजूरी दी, उन्होंने हल्का सा धक्का लगाया। चूंकि सुलेखा की चूत पूरी तरह गीली थी और वह मानसिक व शारीरिक रूप से पूर्णतया उत्तेजित थी, मास्टरजी का औसत माप का लिंग उसकी तंग योनि में थोड़ा घुस गया।
सुलेखा के मुँह से एक हिचकी सी निकली और उसने पास रखे मास्टरजी के बाजुओं को कस कर पकड़ लिया।
मास्टरजी उसे कम से कम दर्द देकर उसका कुंवारापन लूटना चाहते थे। मास्टरजी ने आश्वासन के तौर पर लंड बाहर निकाला। सुलेखा की पकड़ थोड़ी ढीली हुई और उसने एक लम्बी सांस छोड़ी।
जैसे ही सुलेखा ने सांस छोड़ी, मास्टरजी ने एक और वार किया। इस बार लंड थोड़ा और अन्दर गया पर सुलेखा की कुंवारी योनि को नहीं भेद पाया।
उसकी झिल्ली पहरेदार की तरह उनके लंड का रास्ता रोके खड़ी थी।
सुलेखा को इतना अचम्भा नहीं हुआ जितना पहली बार हुआ था फिर भी शायद वह वार के लिए तैयार नहीं थी। उसके मुँह से एक हल्की सी चीख निकल गई।
मास्टरजी ने फिर से लंड बाहर निकाल लिया पर योनिद्वार पर ही रखा।
मास्टरजी ने उसके चूतड़ों को सहलाया और घुटनों पर पुच्ची की। हालाँकि वे उसे कम से कम दर्द देना चाहते थे पर वे जानते थे कि कुंवारेपन की झिल्ली कई बार कठोर होती है और आसानी से नहीं टूटती।
शायद सुलेखा की झिल्ली भी ऐसी ही थी। वे उसका ध्यान बँटा कर अचानक वार करना चाहते थे जिससे उसे कम से कम दर्द हो।
जैसे डॉक्टर जब बच्चों को इंजेक्शन लगता है तो इधर उधर की बातों में लगा कर झट से सुई अन्दर कर देता है। नहीं तो बच्चे बहुत आनाकानी करते हैं और रोते हैं।
मास्टरजी- सुलेखा, तुम्हारा जन्मदिन कब है?’
‘जी, 26 अगस्त को।’
‘अच्छा, जन्मदिन कैसे मनाते हो?’
‘जी, कुछ ख़ास नहीं। मंदिर जाते हैं, पिताजी मिठाई लाते हैं। कभी कभी नए कपड़े भी मिल जाते हैं!’
मास्टरजी- तुम यहाँ पर कितने सालों से हो?’
यह सवालात करते वक़्त मास्टरजी अपने लंड से उसके योनिद्वार पर लगातार धीरे धीरे दस्तक दे रहे थे जिससे एक तो लंड कड़क रहे और दूसरा उनका निशाना न बिगड़े।
‘जी, करीब पांच साल से।’
‘तुम्हारे कितने भाई बहन हैं?’
‘जी, हम तीन बहनें हैं। भाई कोई नहीं है!’
‘ओह, तो भाई की कमी खलती होगी!’
‘जी’
‘कोई लड़का दोस्त है तुम्हारा?’
‘जी नहीं’ सुलेखा ने ज़ोर से कहा। मानो ऐसा होना गलत बात हो।
‘इसमें कोई गलत बात क्या है। हर लड़की के जीवन में कोई न कोई लड़का तो होना ही चाहिए!’
‘किसलिए?’
‘किस लिए क्या? किस करने के लिए और क्या!! आज तुम्हें चुम्मी में मज़ा नहीं आया क्या?’
‘जी आया था!’
मास्टरजी ने अपने लंड के धक्कों का माप थोड़ा बढ़ाया।
‘क्या तुम लड़की को ऐसी चुम्मी देना चाहोगी?’
‘ना ना .. कभी नहीं!’
‘तो फिर लड़का होना चाहिए ना?’
‘जी’
‘अगर कोई और नहीं है तो मुझे ही अपना दोस्त समझ लो, ठीक?’
‘जी ठीक’
उसके यह कहते ही मास्टरजी ने एक ज़ोरदार धक्का लगाया और उनका लंड इस बार सुलेखा की झिल्ली के विरोध को पछाड़ते हुए काफी अन्दर चला गया।
सुलेखा बातों में लगी थी और मास्टरजी की योजना नहीं जानती थी। इस अचानक आक्रमण से हक्की बक्की रह गई।
उसकी योनि में एक तीव्र दर्द हुआ और उसको कुछ गर्म द्रव्य के बहने का अहसास हुआ। उसके मुँह से ज़ोर की चीख निकली और उसने मास्टरजी के हाथ ज़ोर से जकड़ लिए।
मास्टरजी थोड़ी देर रुके रहे। जब अचानक हुए दर्द का असर कुछ कम हुआ तो उन्होंने कहा- मैंने कहा था थोड़ी पीड़ा होगी। बस अब नहीं होगी। यह दर्द तो तुम्हें कभी न कभी सहना ही था… हर लड़की को सहना पड़ता है।
सुलेखा कुछ नहीं बोली।
मास्टरजी का काम अभी पूरा नहीं हुआ था उनका लंड पूरी तरह सुलेखा में समावेश नहीं हुआ था। बड़े धीरज के साथ उन्होंने फिर से लंड की हरकत शुरू की। वे सुलेखा के शरीर पर चुम्मियाँ भी बरसा रहे थे और उसके चूत मटर के चारों ओर ऊँगली से हल्का दबाव भी डाल रहे थे।
सुलेखा को दर्द हो रहा था और वह उसे सहन कर रही थी। जब कि दर्द उसकी योनि के अन्दर हो रहा था उसके बाक़ी जिस्म में एक नया सा सुख फैल रहा था। उसको योनि दर्द का मुआवज़ा बाक़ी जगह के सुख से मिल रहा था। धीरे धीरे उसका दर्द कम हुआ।
मास्टरजी- अब कैसा लग रहा है? तुम कहो तो बंद करुँ?
सुलेखा ने आँखों और सिर के इशारे से बताया वह ठीक है।
मास्टरजी- ठीक है। कभी भी दर्द सहन न हो तो मुझे बता देना। इसमें तुम्हें भी मज़ा आना चाहिए।
सुलेखा- जी बता दूंगी!
अब मास्टरजी ने जितना लंड अन्दर गया था उतनी दूरी के धक्के ही लगाने शुरू किये। सुलेखा को कामोत्तेजित रखने के लिए उसके संवेदनशील अंगों को सहलाते रहे और उसकी खूबसूरती की प्रशंसा करते रहे।
सुलेखा धीरे धीरे उनके क्रिया-तंत्र से प्रभावित होने लगी और दर्द की अवहेलना करते हुए उनका साथ देने लगी।
सुलेखा के उत्साह से मास्टरजी ने अपना ज़ोर बढ़ाया और अपने धक्कों में उन्नति लाते हुए सुलेखा की योनि के और भीतर प्रवेश में जुट गए।
धैर्य और विश्वास के साथ हर नए धक्के में वे थोड़ी और सुलेखा कर रहे थे। सुलेखा भी उनकी इस सावधानी से खुश थी। उसे महसूस हो रहा था कि मास्टरजी उसका ध्यान अपनी खुशी की तुलना में ज़्यादा रख रहे हैं।
उसके मन में मास्टरजी के प्रति प्यार उमड़ गया और उसने ऊपर उठकर उनके मुँह को चूम लिया।
मास्टरजी इस पुरस्कार के प्रबल दावेदार थे। उन्होंने भी उसके होटों पर चुम्मी कर दी और दोनों मुस्करा दिए।
मास्टरजी ने अब अपना पौरुष दिखाना शुरू किया। अपने लंड से सुलेखा के योनि दुर्ग पर निर्णायक फतह पाने के लिए उन्होंने युद्धघोष कर दिया। उनका दंड सुलेखा की गुफा में अग्रसर हो रहा था। हर बार उनका लट्ठ पूरा बाहर आता और पूरे वेग से अन्दर प्रविष्ट होता।
हर प्रहार में पिछली बार के मुकाबले ज़्यादा अन्दर जा रहा था। आम तौर पर तो इतनी देर में उनका लंड पूर्णतया घर कर गया होता पर सुलेखा की नवेली चूत अत्यधिक तंग थी और मास्टरजी के लंड को नितांत घर्षण प्रदान कर रही थी।
उनके आनंद की चरम सीमा नहीं थी। वे इस उन्माद का लम्बे समय तक उपभोग करना चाहते थे इसलिए उन्हें कोई जल्दी नहीं थी।
उधर सुलेखा भी मास्टरजी के धैर्य युक्त रवैये से संतुष्ट थी और सम्भोग का आनंद उठा रही थे। अनायास ही उसके मुँह से किलकारियाँ निकलने लगीं। कभी कराहती कभी आहें भरती तो कभी कूकती।
उसके इस संगीत से मास्टरजी का आत्मविश्वास बढ़ रहा था और वे अपने मैथुन वेग में विविधता ला रहे थे। चार पांच छोटे वार के बाद एक दो लम्बे वार करते जिनमें उनका लंड योनि से पूरा बाहर आ कर फिर से पूरा अन्दर जाता था। वार की गति में भी बदलाव लाते… कभी धीरे धीरे और कभी तेज़ तेज़।
इस परिवर्तन भरे क्रम से सुलेखा की उत्सुकता बढ़ रही थी। उसे यह नहीं पता चल रहा था कि आगे कैसा वार होगा!! मास्टरजी का आत्म नियंत्रण अब अपनी सीमा के समीप पहुँच रहा था। बहुत देर से वे अपने आप को संभाले हुए थे। वे अपने स्खलन के पहले सुलेखा को चरमोत्कर्ष तक पहुँचाना चाहते थे। इस लक्ष्य से उन्होंने सुलेखा की भग-शिश्न (योनि मटर) को सुलगाना शुरू किया।
कहते हैं यह भाग लड़की के शरीर का इतना संवेदनशील हिस्सा है कि इसको कभी पकड़ना, मसलना या सहलाना नहीं चाहिए। सिर्फ इसके इर्द गिर्द ऊँगली से लड़की को छेड़ना चाहिए। उसकी कामुकता को भड़काना चाहिए। अगर सीधे सीधे उसकी मटर को छुएंगे तो वह शायद सह नहीं पाए और उसकी कामाग्नि भड़कने के बजाय बुझने लगे…
मास्टरजी को यह सब पता था। वे सुनियोजित तरीके से सुलेखा की वासना रूपी आग में मटर की छेड़छाड़ से मानो घी डाल रहे थे।
सुलेखा घी पड़ते ही प्रज्वलित हो गई और नागिन की तरह मास्टरजी के बीन रूपी लंड के सामने डोलने लगी। उसके मुँह से अद्भुत आवाजें आने लगीं।
उसने अपनी टांगों से मास्टरजी की कमर को घेर लिया और उनके लिंग-योनि यातायात को और प्रघाढ़ बनाने में मदद करने लगी।
उसने अपनी मुंदी आँखें खोल लीं और मास्टरजी को आदर और प्यार के प्रभावशाली मिश्रण से देखने लगी।
मास्टरजी की आँखें आसमान की तरफ थीं और वे भुजंगासन में सुलेखा को चोद रहे थे। उनकी साँसें तेज़ हो रहीं थीं। माथे पर पसीने की कुछ बूँदें छलक आईं थीं।
वे एक निश्चित लय और ताल के साथ निरंतर ऊपर नीचे हो रहे थे।
सुलेखा उन्हें देख कर आत्म विभोर हो रही थी।
उसे मास्टरजी पर अपना वशीकरण साफ़ दिख रहा था। उसने फिर से आँखें मूँद लीं और मास्टरजी की लय से लय मिला कर धक्कम पेल करने लगी।
अब उसके शरीर में एक तूफ़ान उत्पन्न होने लगा। उसे लगा मानो पूरा शरीर संवेदना से भर गया है। वह भौतिक सुख की सीढ़ीयों पर ऊपर को चली जा रही थी। उसमें उन्माद का नशा पनपने लगा। उसे लगा वह बेहोश हो जायेगी।
मास्टरजी अपनी लय में लगे हुए थे। सुलेखा का चैतन्य शरीर मोक्ष प्राप्ति की तरफ बढ़ रहा था।
फिर अचानक उसके गर्भ की गहराई में एक विस्फोट सा हुआ और वह थरथरा गई उसका जिस्म अकड़ कर उठा और धम्म से बिस्तर पर गिर गया। वह मूर्छित सी पड़ गई। उसकी योनि से एक धारा सी फूटी जिसने मास्टरजी के लंड को नहला दिया। उनका गीला लंड और भी चपल हो गया और चूत के अन्दर बाहर आसानी से फिसलने लगा।
सुलेखा के कामोन्माद को देख कर मास्टरजी का नियंत्रण भी टूट गया और उन्होंने एक संपूर्ण वार के साथ अपनी मोक्ष प्राप्ति कर ली। उनकी तृप्त आत्मा से एक सुखद चीत्कार निकली जिसने सुलेखा की योगनिद्रा को भंग कर दिया। उनके लिंग से एक गाढ़ा, दमदार और ओजस्वी वीर्य प्रपात छूटा जो उन्होंने सुलेखा के पेट और वक्ष स्थल पर ऊँडेल दिया।
फिर थक कर खुद भी उस पर गिर गए।
सुलेखा ने उनको अपनी बाँहों में भर लिया। सुलेखा और मास्टरजी के शरीर उनके वीर्य रूपी गौंद से मानो चिपक से गए और वे न जाने कब तक यूँ ही लेटे रहे।
एक युग के बाद दोनों उठने को हुए तो पता चला की वीर्य गौंद से वे वाकई चिपक गए हैं। अलग होने की कोशिश में मास्टरजी के सीने के बाल खिंच रहे थे और कुछ टूट कर सुलेखा के वक्ष पर लिस गए थे।
सुलेखा को अचानक शर्म सी आने लगी और वह अपने आप को छुड़ा कर अपने कपड़े लेकर गुसलखाने की ओर भाग गई। वह नहा कर बाहर आई तो मास्टरजी ने उसको एक बार फिर से आलिंगनबद्ध कर लिया और कृतज्ञ नज़रों से शुक्रिया देने लगे।
सुलेखा ने उनका गाल चूम कर उनका धन्यवाद किया और घर जाने के लिए निकलने लगी।
मास्टरजी ने उसे पिछ्वाड़े से बाहर जाने का रास्ता बताया। वह जाने ही वाली थी कि उसे याद आया और बोली- मास्टरजी, आप अंजलि को कोई मिठाई देने वाले थे। उस समय तो वह जल्दी में थी। कहो तो मैं ले जाऊँ। मेरी बहनें खुश हो जायेंगी!’
मास्टरजी एक ही दिन में तीन लड़कियों को खुश करने का मौका नहीं गवांना चाहते थे सो झट से बोले- हाँ हाँ, क्यों नहीं। तुम पूरा डब्बा ही ले जाओ।’ अब मुझे मिठाई की ज़रुरत नहीं रही। मेरी आत्मा तुम्हारे होंटों का रस पी कर हमेशा के लिए मीठी हो गई है।’
यह कहते हुए उन्होंने सुलेखा को मिठाई का डब्बा पकड़ा दिया।
फिर उसकी आँखों में आँखें डाल कर बोले- कल आओगी तो आज का मज़ा भूल जाओगी। कल एक विशेष पाठ पढ़ाना है तुम्हें। बोलो आओगी ना? ‘
‘जी पूरी कोशिश करूंगी!’ अब तो सुलेखा को रति सुख का चस्का लग गया था। लड़कियों को ख़ास तौर से इस चस्के का नशा बहुत गहरा लगता है!!!
मास्टरजी ने पहले घर के बाहर जा कर मुआइना कर लिया कि कहीं कोई है तो नहीं और फिर सुलेखा को घर जाने की आज्ञा दे दी।
सुलेखा अपनी सूजी हुई योनि लिए अपने घर को चल दी।
आपको यहाँ तक की कहानी कैसी लगी मुझे ज़रूर बताइए। आपके पत्रों और सुझावों का मुझे इंतज़ार रहेगा, ख़ास तौर से महिला पाठकों का क्योंकि लड़कियों के दृष्टिकोण का मुझे आभास नहीं है। उनके परामर्श मेरे लिए ज़रूरी हैं। Hindi Sex Stories